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सभोपदेशक 2:1 - पवित्र बाइबल

1 मैंने अपने मन में कहा, “मुझे मनो विनोद करना चाहिए। मुझे हर वस्तु का जितना रस मैं ले सकूँ, उतना लेना चाहिय।” किन्तु मैंने जाना कि यह भी व्यर्थ है।

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Hindi Holy Bible

1 मैं ने अपने मन से कहा, चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जांचूंगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो। परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है।

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पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

1 मैंने अपने हृदय में कहा, “चल, अब मैं भोग-विलास को जांचूंगा, इसलिए मौज कर।” पर मुझे अनुभव हुआ कि भोग-विलास भी निस्‍सार है।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

1 मैं ने अपने मन से कहा, “चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जाँचूँगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो।” परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है।

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नवीन हिंदी बाइबल

1 मैंने अपने मन से कहा, “चल, मैं सुख-विलास देकर तुझे जाँचूँगा; इसलिए तू आनंद मना।” परंतु देखो, यह भी व्यर्थ है।

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सरल हिन्दी बाइबल

1 मैंने अपने आपसे कहा, “चलो, मैं आनंद के द्वारा तुम्हें परखूंगा.” इसलिये आनंदित और मगन हो जाओ. मगर मैंने यही पाया कि यह भी बेकार ही है.

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सभोपदेशक 2:1
27 क्रॉस रेफरेंस  

इसलिए आओ हम नीचे चले और इनकी भाषा को गड़बड़ कर दें। तब ये एक दूसरे की बात नहीं समझेंगे।”


तब अराम के राजा ने कहा, “अभी जाओ और मैं एक पत्र इस्राएल के राजा के नाम भेजूँगा।” अतः नामान इस्राएल गया। नामान अपने साथ कुछ भेंट ले गया। नामान साढ़े सात सौ पौंड चाँदी, छः हज़ार स्वर्ण मुद्राएं, और दस बार बदलने के वस्त्र ले गया।


वे सोचते हैं, जैसे कोई बुरी बात उनके साथ नहीं घटेगी। वे कहा करते हैं, “हम मौज से रहेंगे और कभी भी दण्डित नहीं होंगे।”


मूर्ख अपने मनमें कहता है, “परमेश्वर नहीं है।” मूर्ख जन तो ऐसे कार्य करते हैं जो भ्रष्ट और घृणित होते हैं। उनमें से कोई भी भले काम नहीं करता है।


हे योहवा, मैं चाहता हूँ अपने हृदय से तुझसे बात करुँ। हे यहोवा, मैं तुझसे बात करने तेरे सामने आया हूँ।


हँसते हुए भी मन रोता रह सकता है, और आनन्द दुःख में बदल सकता है।


सो हे युवकों! जब तक तुम जवान हो, आनन्द मनाओ। प्रसन्न रहो! और जो तुम्हारा मन चाहे, वही करो। जो तुम्हारी इच्छा हो वह करो। किन्तु याद रखो तुम्हारे प्रत्येक कार्य के लिये परमेश्वर तुम्हारा न्याय करेगा।


मेरी आँखों ने जो कुछ देखा और चाहा उसे मैंने प्राप्त किया। मैं जो कुछ करता, मेरा मन सदा उससे प्रसन्न रहा करता और यह प्रसन्नता मेरे कठिन परिश्रम का प्रतिफल थीं।


अपने मन में मैंने सोचा, “किसी मूर्ख व्यक्ति के साथ जो घटता है वह मेरे साथ भी घटेगा सो इतना बुद्धिमान बनने के लिये इतना कठिन परिश्रम मैंने क्यों किया?” अपने आपसे मैंने कहा, “बुद्धिमान बनना भी बेकार है।”


विवेकी मनुष्य तो सोचता है मृत्यु की किन्तु मूर्ख जन तो बस सोचते रहते हैं कि गुजरे समय अच्छा।


सो मैंने निश्चय किया कि जीवन का आनन्द लेना अधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस जीवन में एक व्यक्ति जो सबसे अच्छी बात कर सकता है वह है खाना, पीना और जीवन का रस लेना। इससे कम से कम व्यक्ति को इस धरती पर उसके जीवन के दौरान परमेश्वर ने करने के लिये जो कठिन काम दिया है उसका आनन्द लेने मे सहायता मिलेगी।


“अब मैं तुझको बताऊँगा कि अपने अंगूर के बगीचे के लिये मैं क्या कुछ करुँगा: वह कंटीली झाड़ी जो खेत की रक्षा करती है मैं उखाड़ दूँगा, और उन झाड़ियों को आग में जला दूँगा। पत्थर का परकोटा तोड़ कर गिरा दूँगा। बगीचे को रौंद दिया जायेगा।


“देखो, तुम लोग अपने ही ढंग से जीना चाहते हो। अपनी अग्नि और अपनी मशालों का तुम स्वयं जलाते हो। तुम अपने ही ढंग से रहना चाहते। किन्तु तुम्हें दण्ड दिया जायेगा। तुम अपनी ही आग में गिरोगे और तुम्हारी अपनी ही मशालें तुम्हें जला डालेंगी। ऐसी घटना मैं घटवाऊँगा।”


मेरा स्वामी यहोवा सीखने में मेरा सहायक है और मैं उसका विरोधी नहीं बना हूँ। मैं उसके पीछे चलना नहीं छोड़ूँगा।


फिर अपनी आत्मा से कहूँगा, अरे मेरी आत्मा अब बहुत सी उत्तम वस्तुएँ, बहुत से बरसों के लिये तेरे पास संचित हैं। घबरा मत, खा, पी और मौज उड़ा।’


“अब देखो, एक व्यक्ति था जो बहुत धनी था। वह बैंगनी रंग के उत्तम मलमल के वस्त्र पहनता था और हर दिन विलासिता के जीवन का आनन्द लेता था।


नरक में तड़पते हुए उसने जब आँखें उठा कर देखा तो इब्राहीम उसे बहुत दूर दिखाई दिया किन्तु उसने लाज़र को उसकी गोद में देखा।


यह मैं इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि एक समय था, जब हम भी मूर्ख थे। आज्ञा का उल्लंघन करते थे। भ्रम में पड़े थे। तथा वासनाओं एवं हर प्रकार के सुख-भोग के दास बने थे। हम दुष्टता और ईर्ष्या में अपना जीवन जीते थे। हम से लोग घृणा करते थे तथा हम भी परस्पर एक दूसरे को घृणा करते थे।


ऐसा कहने वालो सुनो, “आज या कल हम इस या उस नगर में जाकर साल-एक भर वहाँ व्यापार में धन लगा बहुत सा पैसा बना लेंगे।”


हे धनवानो सुनो, जो विपत्तियाँ तुम पर आने वाली हैं, उनके लिए रोओ और ऊँचे स्वर में विलाप करो।


धरती पर तुमने विलासपूर्ण जीवन जीया है और अपने आपको भोग-विलासों में डुबोये रखा है। इस प्रकार तुमने अपने आपको वध किए जाने के दिन के लिए पाल-पोसकर हृष्ट-पुष्ट कर लिया है।


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