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रोमियों 8:20 - पवित्र बाइबल

20 यह सृष्टि निःसार थी अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि उसकी इच्छा से जिसने इसे इस आशा के अधीन किया

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Hindi Holy Bible

20 क्योंकि सृष्टि अपनी इच्छा से नहीं पर आधीन करने वाले की ओर से व्यर्थता के आधीन इस आशा से की गई।

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पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

20 यह सृष्‍टि तो इस संसार की असारता के अधीन हो गयी है—अपनी इच्‍छा से नहीं, बल्‍कि उसकी इच्‍छा से, जिसने उसे अधीन बनाया है—किन्‍तु यह आशा भी बनी रही

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

20 क्योंकि सृष्‍टि अपनी इच्छा से नहीं पर अधीन करनेवाले की ओर से, व्यर्थता के अधीन इस आशा से की गई

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नवीन हिंदी बाइबल

20 क्योंकि सृष्‍टि स्वेच्छा से नहीं बल्कि अधीन करनेवाले के द्वारा इस आशा से व्यर्थता के अधीन कर दी गई,

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सरल हिन्दी बाइबल

20 सृष्टि को हताशा के अधीन कर दिया गया है. यह उसकी अपनी इच्छा के अनुसार नहीं परंतु उनकी इच्छा के अनुसार हुआ है, जिन्होंने उसे इस आशा में अधीन किया है

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रोमियों 8:20
14 क्रॉस रेफरेंस  

लेमेक के पुत्र का नाम नूह रखा। लेमेक ने कहा, “हम किसान लोग बहुत कड़ी मेहनत करते हैं क्यैंकि परमेश्वर ने भूमि को शाप दे दिया है। किन्तु नूह हम लोगों को विश्राम देगा।”


इसलिए परमेश्वर ने नूह से कहा, “सारे लोगों ने पृथ्वी को क्रोध और हिंसा से भर दिया है। इसलिए मैं सभी जीवित प्राणियों को नष्ट करूँगा। मैं उनको पृथ्वी से हटाऊँगा।


हे यहोवा, तूने मुझको बस एक क्षणिक जीवन दिया। तेरे लिये मेरा जीवन कुछ भी नहीं है। हर किसी का जीवन एक बादल सा है। कोई भी सदा नहीं जीता!


उपदेशक का कहना है कि हर वस्तु अर्थहीन है और अकारथ है! मतलब यह कि हर बात व्यर्थ है!


उन्होंने मेरे खेत को मरुभूमि में बदल दिया है। यह सूख गया और मर गया। कोई भी व्यक्ति वहाँ नहीं रहता। पूरा देश ही सूनी मरुभूमि है। उस खेत की देखभाल करने वाला कोई व्यक्ति नहीं बचा है।


कितने अधिक समय तक भूमि प्यासी पड़ी रहेगी घास कब तक सूखी और मरी रहेगी इस भूमि के जानवर और पक्षी मर चुके हैं और यह दुष्ट लोगों का अपराध है। फिर भी वे दुष्ट लोग कहते हैं, “यिर्मयाह हम लोगों पर आने वाली विपत्ति को देखने को जीवित नहीं रहेगा।”


इसलिये यह देश ऐसा हो गया है जैसा किसी की मृत्यु के ऊपर रोता हुआ कोई व्यक्ति हो। यहाँ के सभी लोग दुर्बल हो गये हैं। यहाँ तक कि जंगल के पशु, आकाश के पक्षी और सागर की मछलियाँ मर रही हैं।


हमारे पशु भूख से कराह रहे हैं। हमारे मवेशी खोये—खोये से इधर—उधर घूमते हैं। उनके पास खाने को घास नहीं हैं। भेड़ें मर रही हैं।


क्योंकि हम जानते हैं कि आज तक समूची सृष्टि पीड़ा में कराहती और तड़पती रही है।


हमारा उद्धार हुआ है। इसी से हमारे मन में आशा है किन्तु जब हम जिसकी आशा करते है, उसे देख लेते हैं तो वह आशा नहीं रहती। जो दिख रहा है उसकी आशा कौन कर सकता है।


हमारे पर का पालन करें:

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