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रोमियों 7:5 - पवित्र बाइबल

5 क्योंकि जब हम मानव स्वभाव के अनुसार जी रहे थे, हमारी पापपूर्ण वासनाएँ जो व्यवस्था के द्वारा आयी थीं, हमारे अंगों पर हावी थीं। ताकि हम कर्मों की ऐसी खेती करें जिसका अंत मौत में होता है।

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Hindi Holy Bible

5 क्योंकि जब हम शारीरिक थे, तो पापों की अभिलाषायें जो व्यवस्था के द्वारा थीं, मृत्यु का फल उत्पन्न करने के लिये हमारे अंगों में काम करती थीं।

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पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

5 जब हम अपने शारीरिक स्‍वाभाव के अधीन थे, तो व्‍यवस्‍था से बल पाकर पापमय वासनाएँ हमारे अंगों में क्रियाशील थीं और मृत्‍यु के फल उत्‍पन्न करती थीं।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

5 क्योंकि जब हम शारीरिक थे, तो पापों की अभिलाषाएँ जो व्यवस्था के द्वारा थीं, मृत्यु का फल उत्पन्न करने के लिये हमारे अंगों में काम करती थीं।

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नवीन हिंदी बाइबल

5 क्योंकि जब हम शारीरिक थे तो हमारी लालसाएँ जो व्यवस्था के अनुसार पापमय थीं, हमारे अंगों में मृत्यु का फल लाने के लिए कार्य करती थीं।

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सरल हिन्दी बाइबल

5 जिस समय हम पाप के स्वभाव द्वारा नियंत्रित थे, पाप की लालसाएं, जो व्यवस्था द्वारा उत्तेजित की जाती थी, मृत्यु के फल के लिए हमारे अंगों में सक्रिय थी,

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रोमियों 7:5
28 क्रॉस रेफरेंस  

क्योंकि बुरे विचार, हत्या, व्यभिचार, दुराचार, चोरी, झूठ और निन्दा जैसी सभी बुराईयाँ मन से ही आती हैं।


माँस से केवल माँस ही पैदा होता है; और जो आत्मा से उत्पन्न हो वह आत्मा है।


इसलिए परमेश्वर ने उन्हें तुच्छ वासनाओं के हाथों सौंप दिया। उनकी स्त्रियाँ स्वाभाविक यौन सम्बन्धों की बजाय अस्वाभाविक यौन सम्बन्ध रखने लगी।


व्यवस्था के कामों से कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के सामने धर्मी सिद्ध नहीं हो सकता। क्योंकि व्यवस्था से जो कुछ मिलता है, वह है पाप की पहचान करना।


लोगों द्वारा व्यवस्था का पालन नहीं किये जाने से परमेश्वर का क्रोध उपजता है किन्तु जहाँ व्यवस्था ही नहीं है वहाँ व्यवस्था का तोड़ना ही क्या?


व्यवस्था का आगमन इसलिए हुआ कि अपराध बढ़ पायें। किन्तु जहाँ पाप बढ़ा, वहाँ परमेश्वर का अनुग्रह और भी अधिक बढ़ा।


अपने शरीर के अंगों को अधर्म की सेवा के लिए पाप के हवाले न करो बल्कि मरे हुओं में से जी उठने वालों के समान परमेश्वर के हवाले कर दो। और अपने शरीर के अंगों को धार्मिकता की सेवा के साधन के रूप में परमेश्वर के हवाले कर दो।


(मैं एक उदाहरण दे रहा हूँ जिसे सभी लोग समझ सकें क्योंकि उसे समझना तुम लोगों के लिए कठिन है।) क्योंकि तुमने अपने शरीर के अंगों को अपवित्रता और व्यवस्था हीनता के आगे उनके दास के रूप में सौंप दिया था जिससे व्यवस्था हीनता पैदा हूई, अब तुम लोग ठीक वैसे ही अपने शरीर के अंगों को दास के रूप में धार्मिकता के हाथों सौंप दो ताकि सम्पूर्ण समर्पण उत्पन्न हो।


और देखो उस समय तुम्हें कैसा फल मिला? जिसके लिए आज तुम शर्मिन्दा हो, जिसका अंतिम परिणाम मृत्यु है।


क्योंकि पाप का मूल्य तो बस मृत्यु ही है जबकि हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन, परमेश्वर का सेंतमेतका वरदान है।


पर अपने शरीर में मैं एक दूसरे ही नियम को काम करते देखता हूँ यह मेरे चिन्तन पर शासन करने वाली व्यवस्था से युद्ध करता है और मुझे पाप की व्यवस्था का बंदी बना लेता है। यह व्यवस्था मेरे शरीर में क्रियाशील है।


पाप मृत्यु का दंश है और पाप को शक्ति मिलती है व्यवस्था से।


क्योंकि यद्यपि हम भी इस संसार में ही रहते हैं किन्तु हम संसारी लोगों की तरह नहीं लड़ते हैं।


किन्तु वे सभी लोग जो व्यवस्था के विधानों के पालन पर निर्भर रहते हैं, वे तो किसी अभिशाप के अधीन हैं। शास्त्र में लिखा है: “ऐसा हर व्यक्ति शापित है जो व्यवस्था के विधान की पुस्तक में लिखी हर बात का लगन के साथ पालन नहीं करता।”


उन लोगों ने जो यीशु मसीह के हैं, अपने पापपूर्ण मानव-स्वभाव को वासनाओं और इच्छाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है।


इसलिए याद रखो, वे लोग, जो अपने शरीर में मानव हाथों द्वारा किये गये ख़तने के कारण अपने आपको “ख़तना युक्त” बताते हैं, विधर्मी के रूप में जन्मे तुम लोगों को “ख़तना रहित” कहते थे।


एक समय हम भी उन्हीं के बीच जीते थे और अपनी पापपूर्ण प्रकृति की भौतिक इच्छाओं को तृप्त करते हुए अपने हृदयों और पापपूर्ण प्रकृति की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए संसार के दूसरे लोगों के समान परमेश्वर के क्रोध के पात्र थे।


इसलिए तुममें जो कुछ सांसारिक बातें है, उसका अंत कर दो। व्यभिचार, अपवित्रता, वासना, बुरी इच्छाएँ और लालच जो मूर्ति उपासना का ही एक रूप है,


यह मैं इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि एक समय था, जब हम भी मूर्ख थे। आज्ञा का उल्लंघन करते थे। भ्रम में पड़े थे। तथा वासनाओं एवं हर प्रकार के सुख-भोग के दास बने थे। हम दुष्टता और ईर्ष्या में अपना जीवन जीते थे। हम से लोग घृणा करते थे तथा हम भी परस्पर एक दूसरे को घृणा करते थे।


फिर जब वह इच्छा गर्भवती होती है तो पाप पूरा बढ़ जाता है और वह मृत्यु को जन्म देता है।


तुम्हारे बीच लड़ाई-झगड़े क्यों होते हैं? क्या उनका कारण तुम्हारे अपने ही भीतर नहीं है? तुम्हारी वे भोग-विलासपूर्ण इच्छाएँ ही जो तुम्हारे भीतर निरन्तर द्वन्द्व करती रहती हैं, क्या उन्हीं से ये पैदा नहीं होते?


जो कोई पाप करता है, वह परमेश्वर के नियम को तोड़ता है क्योंकि नियम का तोड़ना ही पाप है।


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