अय्यूब के तीन मित्र थे:तेमानी का एलीपज, शूही का बिलदद और नामाती का सोपर। इन तीनों मित्रों ने अय्यूब के साथ जो बुरी घटनाएँ घटी थीं, उन सब के बारे में सुना। ये तीनों मित्र अपना—अपना घर छोड़कर आपस में एक दूसरे से मिले। उन्होंने निश्चय किया कि वे अय्यूब के पास जा कर उसके प्रति सहानुभूति प्रकट करें और उसे ढाढस बँधायें।
फिर जो यहूदी घर पर उसे सांत्वना दे रहे थे, जब उन्होंने देखा कि मरियम उठकर झटपट चल दी तो वे यह सोच कर कि वह कब्र पर विलाप करने जा रही है, उसके पीछे हो लिये।
हे सिय्योन की पुत्री, मैं किससे तेरी तुलना करूँ? तुझको किसके समान कहूँ? हे सिय्योन की कुँवारी कन्या, तुझको किससे तुलना करूँ? तुझे कैसे ढांढस बंधाऊँ तेरा विनाश सागर सा विस्तृत है! ऐसा कोई भी नहीं जो तेरा उपचार करें।
“मेरी सुन, क्योंकि मैं कराह रही हूँ! मेरे पास कोई नहीं है जो मुझको चैन दे, मेरे सब शत्रुओं ने मेरी दु:खों की बात सुन ली है। वे बहुत प्रसन्न हैं। वे बहुत ही प्रसन्न हैं क्योंकि तूने मेरे साथ ऐसा किया। अब उस दिन को ले आ जिसकी तूने घोषणा की थी। उस दिन तू मेरे शत्रुओं को वैसी ही बना दे जैसी मैं अब हूँ।
“इन सभी बातों को लेकर मैं चिल्लाई। मेरे नयन जल में डूब गये। मेरे पास कोई नहीं मुझे चैन देने। मेरे पास कोई नहीं जो मुझे थोड़ी सी शांति दे। मेरे संताने ऐसी बनी जैसे उजाड़ होता है। वे ऐसे इसलिये हुआ कि शत्रु जीत गया था।”
यरूशलेम के वस्त्र गंदे थे। उसने नहीं सोचा था कि उसके साथ क्या कुछ घटेगा। उसका पतन विचित्र था, उसके पास कोई नहीं था जो उसको शांति देता। वह कहा करती है, “हे यहोवा, देख मैं कितनी दु:खी हूँ! देख मेरा शत्रु कैसा सोच रहा है कि वह कितना महान है!”
रात में वह बुरी तरह रोती है और उसके अश्रु गालों पर टिके हुए है! उसके पास कोई नहीं है जो उसको ढांढस दे। उसके मित्र देशों में कोई ऐसा नहीं है जो उसको चैन दे। उसके सभी मित्रों ने उससे मुख फेर लिया। उसके मित्र उसके शत्रु बन गये।
अय्यूब के सभी भाई और बहनें अय्यूब के घर वापस आ गये और हर कोई जो अय्यूब को पहले जानता था, उसके घर आया। अय्यूब के साथ उन सब ने एक बड़ी दावत में खाना खाया। क्योंकि यहोवा ने अय्यूब को बहुत कष्ट दिये थे, इसलिये उन्होंने अय्यूब को सान्त्वना दी। हर किसी व्यक्ति ने अय्यूब को चाँदी का एक सिक्का और सोने की एक अंगूठी भेंट में दीं।
दाऊद ने कहा, “नाहाश मेरे प्रति कृपालु रहा। इसलिये मैं उसके पुत्र हानून के प्रति कृपालु रहूँगा।” इसलिये दाऊद ने हानून को उसके पिता की मृत्यु पर सांत्वना देने के लिये अपने अधिकारियों को भेजा। अत: दाऊद के सेवक अम्मोनियों के देश में गये।
याकूब के सभी पुत्रों, पुत्रियों ने उसे धीरज बँधाने का प्रयत्न किया। किन्तु याकूब कभी धीरज न धर सका। याकूब ने कहा, “मैं मरने के दिन तक अपने पुत्र यूसुफ के शोक में डूबा रहूँगा।”
दो जोड़े विपत्ति यरूशलेम पर टूट पड़ी हैं, लूटपाट और अनाज की परेशानी तथा भयानक भूख और हत्याएँ। जब तू विपत्ति में पड़ी थी, किसी ने भी तुझे सहारा नहीं दिया, किसी ने भी तुझ पर तरस नहीं खाया।
तब इन लोगों ने शाऊल और उसके पुत्रों की अस्थियाँ लीं और याबेश में पेड़ के नीचे दफनायीं। तब याबेश के लोगों ने शोक मनाया। याबेश के लोगों ने सात दिन तक खाना नहीं खाया।
याबेश के सभी वीर पुरुष शाऊल और उसके पुत्रों का शव लेने गए। वे उन्हें याबेश में शाउल और उसके पुत्रों का शव लेने गए। वे उन्हे याबेश में वापस ले आए। उन वीर पूरुषों ने शाउल और उसके पुत्रों की अस्थियों को, याबेश में एक विशाल पेड़ के नीचे दफनाया। तब उन्होंने अपना दुःख प्रकट किया और सात दिन तक उपवास रखा।