3 “मैं एक यहूदी व्यक्ति हूँ। किलिकिया के तरसुस में मेरा जन्म हुआ था और मैं इसी नगर में पल-पुस कर बड़ा हुआ। गमलिएल के चरणों में बैठ कर हमारे परम्परागत विधान के अनुसार बड़ी कड़ाई के साथ मेरी शिक्षा-दीक्षा हुई। परमेश्वर के प्रति मैं बड़ा उत्साही था। ठीक वैसे ही जैसे आज तुम सब हो।
3 मैं तो यहूदी मनुष्य हूं, जो किलिकिया के तरसुस में जन्मा; परन्तु इस नगर में गमलीएल के पांवों के पास बैठकर पढ़ाया गया, और बाप दादों की व्यवस्था की ठीक रीति पर सिखाया गया; और परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था, जैसे तुम सब आज लगाए हो।
3 “मैं यहूदी हूँ। मेरा जन्म किलिकिया के तरसुस नगर में हुआ था, किन्तु मैंने इस नगर में गमालिएल के चरणों में बैठकर अपनी शिक्षा-दीक्षा पाई। पूर्वजों की व्यवस्था का मैंने विधिवत् अध्ययन किया। मैं परमेश्वर का वैसा ही उत्साही उपासक बना, जैसे आप सब हैं।
3 “मैं तो यहूदी मनुष्य हूँ, जो किलिकिया के तरसुस में जन्मा; परन्तु इस नगर में गमलीएल के पाँवों के पास बैठकर पढ़ाया गया, और बापदादों की व्यवस्था की ठीक रीति पर सिखाया गया; और परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था, जैसे तुम सब आज लगाए हो।
3 “मैं किलिकिया के तरसुस में जन्मा एक यहूदी मनुष्य हूँ, परंतु मेरा पालन-पोषण इसी नगर में हुआ और गमलीएल के चरणों में मुझे पूर्वजों की व्यवस्था को खराई से सिखाया गया। मैं परमेश्वर के लिए बड़ा उत्साही था जैसे आज तुम सब हो।
3 “मैं यहूदी हूं, मेरा जन्म किलिकिया प्रदेश, के तारस्यॉस नगर में तथा पालन पोषण इसी नगर येरूशलेम में हुआ है. मेरी शिक्षा नियमानुकूल पूर्वजों की व्यवस्था के अनुरूप आचार्य गमालिएल महोदय की देखरेख में हुई, आज परमेश्वर के प्रति जैसा आप सबका उत्साह है, वैसा ही मेरा भी था.
(गिबोनी इस्राएली नहीं थे। वे ऐसे एमोरियों के समूह थे जो अभी तक जीवित छोड़ दिये गये थे। इस्राएलियों ने प्रतिज्ञा की थी कि वे गिबोनी पर चोट नहीं करेंगे। किन्तु शाऊल को इस्राएल और यहूदा के प्रति गहरा लगाव था। इसलिये उसने गिबोनियों को मारना चाहा।) राजा दाऊद ने गिबोनी को एक साथ इकट्ठा किया। उसने उनसे बातें कीं।
एलीशा फिर गिलगाल आ गया। उस समय देश में भुखमरी का समय था। नबियों का समूह एलीशा के सामने बैठा था। एलीशा ने अपने सेवक से कहा, “बड़े बर्तन को आग पर रखो और नबियों के समूह के लिये कुछ शोरवा बानाओ।”
फिर वहाँ के लोग जो कुछ घटा था उसे देखने बाहर आये। वे यीशु से मिले। और उन्होंने उस व्यक्ति को जिसमें से दुष्टात्माएँ निकली थीं यीशु के चरणों में बैठे पाया। उस व्यक्ति ने कपड़े पहने हुए थे और उसका दिमाग एकदम सही था। इससे वे सभी डर गये।
उन्होंने उनके हाथों यह पत्र भेजा: तुम्हारे बंधु, बुजुर्गों और प्रेरितों की ओर से अन्ताकिया, सीरिया और किलिकिया के गैर यहूदी भाईयों को नमस्कार पहुँचे। प्यारे भाईयों:
जब उन्होंने यह सुना तो वे परमेश्वर की स्तुति करते हुए उससे बोले, “बंधु तुम तो देख ही रहे हो यहाँ कितने ही हज़ारों यहूदी ऐसे हैं जिन्होंने विश्वास ग्रहण कर लिया है। किन्तु वे सभी व्यवस्था के प्रति अत्यधिक उत्साहित हैं।
पौलुस ने कहा, “मैं सिलिकिया के तरसुस नगर का एक यहूदी व्यक्ति हूँ। और एक प्रसिद्ध नगर का नागरिक हूँ। मैं तुझसे चाहता हूँ कि तू मुझे इन लोगों के बीच बोलने दे।”
फिर जब पौलुस को पता चला कि उनमें से आधे लोग सदूकी हैं और आधे फ़रीसी तो महासभा के बीच उसने ऊँचे स्वर में कहा, “हे भाईयों, मैं फ़रीसी हूँ एक फ़रीसी का बेटा हूँ। मरने के बाद फिर से जी उठने के प्रति मेरी मान्यता के कारण मुझ पर अभियोग चलाया जा रहा है!”
वे मुझे बहुत समय से जानते हैं और यदि वे चाहें तो इस बात की गवाही दे सकते हैं कि मैंने हमारे धर्म के एक सबसे अधिक कट्टर पंथ के अनुसार एक फ़रीसी के रूप में जीवन जिया है।
किन्तु महासभा में से एक गमलिएल नामक फ़रीसी, जो धर्मशास्त्र का शिक्षक भी था, तथा जिसका सब लोग आदर करते थे, खड़ा हुआ और आज्ञा दी कि इन्हें थोड़ी देर के लिये बाहर कर दिया जाये।
किन्तु तथाकथित स्वतन्त्र किये गये लोगों के आराधनालय के कुछ लोग जो कुरेनी और सिकन्दरिया से तथा किलिकिया और एशिया से आये यहूदी थे, वे उसके विरोध में वाद-विवाद करने लगे।
प्रभु ने उससे कहा, “खड़ा हो और सीधी कहलाने वाली गली में जा। और वहाँ यहूदा के घर में जाकर तरसुस निवासी शाऊल नाम के एक व्यक्ति के बारे में पूछताछ कर क्योंकि वह प्रार्थना कर रहा है।
तो मैं पूछता हूँ, “क्या परमेश्वर ने अपने ही लोगों को नकार नहीं दिया?” निश्चय ही नहीं। क्योंकि मैं भी एक इस्राएली हूँ, इब्राहीम के वंश से और बिन्यामीन के गोत्र से हूँ।
यहूदी धर्म के पालने में मैं अपने युग के समकालीन यहूदियों से आगे था क्योंकि मेरे पूर्वजों से जो परम्पराएँ मुझे मिली थीं, उनमें मेरी उत्साहपूर्ण आस्था थी।