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प्रेरितों के काम 13:52 - पवित्र बाइबल

52 किन्तु उनके शिष्य आनन्द और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते रहे।

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Hindi Holy Bible

52 और चेले आनन्द से और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते रहे॥

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पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

52 शिष्‍य आनन्‍द और पवित्र आत्‍मा से परिपूर्ण थे।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

52 और चेले आनन्द से और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते गए।

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नवीन हिंदी बाइबल

52 और शिष्य आनंद और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते गए।

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सरल हिन्दी बाइबल

52 प्रभु के शिष्य आनंद और पवित्र आत्मा से भरते चले गए.

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प्रेरितों के काम 13:52
18 क्रॉस रेफरेंस  

कठोर यातनाओं के बीच तुमने पवित्र आत्मा से मिलने वाली प्रसन्नता के साथ सुसंदेश को ग्रहण किया और हमारा तथा प्रभु का अनुकरण करने लगे।


सभी आशाओं का स्रोत परमेश्वर, तुम्हें सम्पूर्ण आनन्द और शांति से भर दे जैसा कि उसमें तुम्हारा विश्वास है। ताकि पवित्र आत्मा की शक्ति से तुम आशा से भरपूर हो जाओ।


जबकि पवित्र आत्मा, प्रेम, प्रसन्नता, शांति, धीरज, दयालुता, नेकी, विश्वास,


जब उन्होंने प्रार्थना पूरी की तो जिस स्थान पर वे एकत्र थे, वह हिल उठा और उन सब में पवित्र आत्मा समा गया, और वे निर्भयता के साथ परमेश्वर के वचन बोलने लगे।


मेरा अभिप्राय यह है कि यद्यपि उनकी कठिन परीक्षा ली गयी तो भी वे प्रसन्न रहे और अपनी गहन दरिद्रता के रहते हुए भी उनकी सम्पूर्ण उदारता उमड़ पड़ी।


इतना ही नहीं, हम अपनी विपत्तियों में भी आनन्द लेते हैं। क्योंकि हम जानते हैं कि विपत्ति धीरज को जन्म देती है।


वे सभी पवित्र आत्मा से भावित हो उठे। और आत्मा के द्वारा दिये गये सामर्थ्य के अनुसार वे दूसरी भाषाओं में बोलने लगे।


तब तुम प्रसन्न रहना, आनन्द से रहना, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हें इसका प्रतिफल मिलेगा। यह वैसा ही है जैसे तुमसे पहले के भविष्यवक्ताओं को लोगों ने सताया था।


बल्कि आनन्द मनाओ कि तुम मसीह की यातनाओं में हिस्सा बटा रहे हो। ताकि जब उसकी महिमा प्रकट हो तब तुम भी आनन्दित और मगन हो सको।


हे मेरे भाईयों, जब कभी तुम तरह तरह की परीक्षाओं में पड़ो तो इसे बड़े आनन्द की बात समझो।


क्योंकि परमेश्वर का राज्य बस खाना-पीना नहीं है बल्कि वह तो धार्मिकता है, शांति है और पवित्र आत्मा से प्राप्त आनन्द है।


सो वे प्रेरित इस बात का आनन्द मनाते हुए कि उन्हें उसके नाम के लिये अपमान सहने योग्य गिना गया है, यहूदी महासभा से चले गये।


मन्दिर में एक समूह के रूप में वे हर दिन मिलते-जुलते रहे। वे अपने घरों में रोटी को विभाजित करते और उदार मन से आनन्द के साथ, मिल-जुलकर खाते।


तब हर शिष्य ने अपनी शक्ति के अनुसार यहूदिया में रहने वाले बन्धुओं की सहायता के लिये कुछ भेजने का निश्चय किया था।


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