49 अब बताओ कि तुम क्या करोगे? क्या तुम मेरे मालिक पर दयालु और श्रद्धालु बनोगे और अपनी पुत्री उसे दोगे? या तुम अपनी पुत्री देना मना करोगे? मुझे बताओ, जिससे मैं यह समझ सकूँ कि मुझे क्या करना है।”
49 सो अब, यदि तू मेरे स्वामी के साथ कृपा और सच्चाई का व्यवहार करना चाहते हो, तो मुझ से कहो: और यदि नहीं चाहते हो, तौभी मुझ से कह दो; ताकि मैं दाहिनी ओर, वा बाईं ओर फिर जाऊं।
49 अब यदि आप मेरे स्वामी से प्रेमपूर्ण और सच्चाई का व्यवहार करना चाहते हैं, तो मुझे बताइए। यदि नहीं, तो वैसा मुझसे कहिए, जिससे मैं निश्चय कर सकूँ कि मुझे क्या करना चाहिए।’
49 इसलिये अब, यदि तुम मेरे स्वामी के साथ कृपा और सच्चाई का व्यवहार करना चाहते हो, तो मुझसे कहो; और यदि नहीं चाहते हो, तौभी मुझसे कह दो; ताकि मैं दाहिनी ओर या बाईं ओर फिर जाऊँ।”
49 इसलिए अब, यदि तुम मेरे स्वामी के प्रति कृपा और विश्वासयोग्यता प्रकट करना चाहते हो, तो मुझे बता दो; और यदि नहीं चाहते, तो भी मुझे बता दो, ताकि मैं दाहिनी या बाईं ओर चला जाऊँ।”
वह समय आ गया जब इस्राएल (याकूब) समझ गया कि वह जल्दी ही मरेगा, इसलिए उसने अपने पुत्र यूसुफ को अपने पास बुलाया। उसने कहा, “यदि तुम मुझसे प्रेम करते हो तो तुम अपने हाथ मेरी जांघ के नीचे रख कर मुझे वचन दो। वचन दो कि तुम, जो मैं कहूँगा करोगे और तुम मेरे प्रति सच्चे रहोगे। जब मैं मरूँ तो मुझे मिस्र में मत दफनाना।
उन व्यक्तियों ने उसे मान लिया। उनहोंने कहा, “हम तुम्हारे जीवन के लिये अपने जीवन की बाज़ी लगा देंगे। किसी व्यक्ति से न बताओ कि हम क्या कर रहे हैं। तब जब यहोवा हम लोगों को हमारा देश देगा, तब हम तुम पर दया करेंगे। तुम हम लोगों पर विश्वास कर सकते हो।”
तू मुझ पर बहुत दयालु रहा है। तूने मेरे लिए बहुत अच्छी चीजें की हैं। पहली बार मैंने यरदन नदी के पास यात्रा की, मेरे पास टहलने की छड़ी के अतिरिक्त कुछ भी न था। किन्तु मेरे पास अब इतनी चीजें हैं कि मैं उनको पूरे दो दलों में बाँट सकूँ।
कृपया अपने देश से हम लोगों को यात्रा करने दें। हम लोग किसी खेत या अंगूर के बाग से यात्रा नहीं करेंगे। हम लोग तुम्हारे किसी कुएँ से पानी नहीं पीएंगे। हम लोग केवल राजपथ से यात्रा करेंगे। हम राजपथ को छोड़कर दायें या बायें नहीं बढ़ेंगे। हम लोग तब तक राजपथ पर ही ठहरेंगे जब तक तुम्हारे देश को पार नहीं कर जाते।”