33 तब लाबान ने उसे खाने के लिए भोजन दिया। लेकिन नौकर ने भोजन करना मना किया। उसने कहा, “मैं तब तक भोजन नहीं करूँगा जब तक मैं यह न बता दूँ कि मैं यहाँ किस लिए आया हूँ।” इसलिए लाबान ने कहा, “तब हम लोगों को बताओ।”
33 तत्पश्चात् सेवक के सम्मुख खाने के लिए भोजन परोसा गया। परन्तु सेवक ने कहा, ‘नहीं, जब तक मैं अपना सन्देश नहीं सुना लूँगा तब तक भोजन नहीं करूँगा।’ लाबान ने कहा, ‘सुनाइए।’
और ऐसे दासों को भी जिनके स्वामी विश्वासी हैं, बस इसलिए कि वे उनके धर्म भाई हैं, उनके प्रति कम सम्मान नहीं दिखाना चाहिए, बल्कि उन्हें तो अपने स्वामियों की और अधिक सेवा करनी चाहिए क्योंकि जिन्हें इसका लाभ मिल रहा है, वे विश्वासी हैं, जिन्हें वे प्रेम करते हैं। इन बातों को सिखाते रहो तथा इनका प्रचार करते रहो।
किन्तु वह जो उस जल को पियेगा, जिसे मैं दूँगा, फिर कभी प्यासा नहीं रहेगा। बल्कि मेरा दिया हुआ जल उसके अन्तर में एक पानी के झरने का रूप ले लेगा जो उमड़-घुमड़ कर उसे अनन्त जीवन प्रदान करेगा।”
हर समय करने के लिये तुम्हारे पास काम है। इसे तुम जितनी उत्तमता से कर सकते हो करो। कब्र में तो कोई काम होगा ही नहीं। वहाँ न तो चिन्तन होगा, न ज्ञान और न विवेक और मृत्यु के उस स्थान को हम सभी तो जा रहे हैं।
इसलिए इब्राहीम का नौकर घर में गया। लाबान ने ऊँटों और उस की मदद की और ऊँटों को खाने के लिए चारा दिया। तब लाबान ने पानी दिया जिससे वह व्यक्ति तथा उसके साथ आए हुए दूसरे नौकर अपने पैर धो सकें।
तब वह बूढ़ा व्यक्ति लेविवंशी व्यक्ति और उसके साथ के व्यक्तियों को अपने साथ अपने घर ले गया। बूढ़े व्यक्ति ने उसके गधों को खिलाया। उन्होंने अपने पैर धोए। तब उसने उन्हें कुछ खाने और कुछ दाखमधु पीने को दिया।