14 अमस्याह एदोमी लोगों को हराने के बाद घर लौटा। वह सेईर के लोगों की उन देवमूर्तियों को लाया जिनकी वे पूजा करते थे। अमस्याह ने उन देवमूर्तियों को पूजना आरम्भ किया। उसने उन देवताओं को प्रणाम किया और उनको सुगन्धि भेंट की।
14 जब अमस्याह एदोनियों का संहार कर के लौट आया, तब उसने सेईरियों के देवताओं को ले आकर अपने देवता कर के खड़ा किया, और उन्हीं के साम्हने दण्डवत करने, और उन्हीं के लिये धूप जलाने लगा।
14 एदोमी सैनिकों का संहार करने के बाद राजा अमस्याह लौटा। वह अपने साथ सेईर निवासियों के देवी-देवताओं की मूर्तियां लाया था। उसने इन देवी-देवताओं को अपना ईश्वर स्वीकार कर लिया, और इनकी मूर्तियाँ प्रतिष्ठित कर उनकी पूजा-उपासना करने लगा। वह मूर्तियों के सम्मुख बलि भी चढ़ाने लगा।
14 जब अमस्याह एदोमियों का संहार करके लौट आया, तब उसने सेईरियों के देवताओं को ले आकर अपने देवता करके खड़ा किया, और उन्हीं के सामने दण्डवत् करने, और उन्हीं के लिये धूप जलाने लगा।
14 जब अमाज़्याह एदोमवासियों को मारकर लौटा, वह अपने साथ सेईरवासियों के देवताओं की मूर्तियां भी ले आया. उसने उन्हें अपने देवता बनाकर प्रतिष्ठित कर दिया, उनकी पूजा करने लगा, उनके सामने धूप जलाने लगा.
14 जब अमस्याह एदोमियों का संहार करके लौट आया, तब उसने सेईरियों के देवताओं को ले आकर अपने देवता करके खड़ा किया, और उन्हीं के सामने दण्डवत् करने, और उन्हीं के लिये धूप जलाने लगा।
उसने दमिश्क के लोगों द्वारा पूजे जाने वाले देवताओं को बलिभेंट की। दमिश्क के लोगों ने आहाज को पराजित किया था। इसलिए उसने मन ही मन सोचा था, “अराम के लोगों के देवताओं की पूजा ने उन्हें सहायता दी। यदि मैं उन देवताओं को बलिभेंट करुँ तो संभव है, वे मेरी भी सहायता करें।” आहाज ने उन देवताओं की पूजा की। इस प्रकार उसने पाप किया और उसने इस्राएल के लोगों को पाप करने वाला बनाया।
इन वस्तुओं के बारे में ये लोग कुछ सोचते ही नहीं है। ये लोग नासमझ हैं। इसलिए इन लोगों ने अपने मन में कभी नहीं सोचा: “आधी लकड़ियाँ मैंने आग में जला डालीं। दहकते कोयलों का प्रयोग मैंने रोटी सेंकने और माँस पकाने में किया। फिर मैंने माँस खाया और बची हुई लकड़ी का प्रयोग मैंने इस भ्रष्ट वस्तु (मूर्ति) को बनाने में किया। अरे, मैं तो एक लकड़ी के टुकड़े की पूजा कर रहा हूँ!”
“तुम्हें उनके देवताओं की मूर्तियों को जला देना चाहिए। तुम्हें उन मूर्तियों पर मढ़े सोने या चाँदी को लेने की इच्छा नहीं रखनी चाहीए। तुम्हें उस सोने और चाँदी को अपने लिए नहीं लेना चाहिए। यदि तुम उसे लोगे तो दण्ड पाओगे। क्यो? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर उन मूर्तियों से घृणा करता है
“तुम्हें इन राष्ट्रों के साथ यह करना चाहिएः तुम्हें उनकी वेदियाँ नष्ट करनी चाहिए और विशेष पत्थरों को टुकड़ों मे तोड़ डालना चाहिए। उनके अशेरा स्तम्भों को काट डालो और उनकी मूतिर्यों को जला दो!
किन्तु उसी समय इस्राएली सेना यहूदा के कुछ नगरों पर आक्रमण कर रही थी। वे शोमरोन से बेथोरोन नगर तक के नगरों पर आक्रमण कर रहे थे। उन्होंने तीन हज़ार लोगों को मार डाला और वे बहुत सी कीमती चीज़ें ले गए। उस सेना के लोग इसलिये क्रोधित थे क्योंकि अमस्याह ने उन्हें युद्ध में अपने साथ सम्मिलित नहीं होने दिया।
फिर वह मनुष्य उस पेड़ को अपने जलाने के काम में लाता है। वह मनुष्य उस पेड़ को काट कर लकड़ी की मुढ्ढियाँ बनाता है और उन्हें खाना बनाने और खुद को गरमाने के काम में लाता है। व्यक्ति थोड़ी सी लकड़ी की आग सुलगा कर अपनी रोटियाँ सेंकता है। किन्तु तो भी मनुष्य उसी लकड़ी से देवता की मूर्ति बनाता है और फिर उस देवता की पूजा करने लगता है। यह देवता तो एक मूर्ति है जिसे उस व्यक्ति ने बनाया है! किन्तु वही मनुष्य उस मूर्ति के आगे अपना माथा नवाता है!
“उनके देवताओं को मत पूजो। उन देवताओं को झूककर कभी प्रणाम मत करो। तुम उस ढंग से कभी न रहो जिस ढंग से वे रहते हैं। तुम्हें उनकी मूर्तियों को निश्चय ही नष्ट कर देना चाहिए और तुम्हें उनके प्रस्तर पिण्ड़ों को तोड़ देना चाहिए जो उन्हें उनके देवताओं को याद दिलाने में सहायता करती हैं।
अमस्याह ने इस्राएल के राजा येहू के पुत्र यहोआहाज के पुत्र योआश के पास सन्देशवाहक भेजा। अमस्याह के सन्देश में कहा गया, “आओ, हम परस्पर युद्ध करें। आमने सामने होकर एक दूसरे का मुकाबला करें।”
यहोवा यह कहता है: “मैं यहूदा को उसके द्वारा किये अनेकों अपराधों के लिये अवश्य दण्ड दूँगा। क्यों क्योंकि उन्होंने यहोवा के आदेशों को मानने से इनकार किया। उन्होंने उनके आदेशों का पालन नहीं किया। उनके पूर्वजों ने झूठ पर विश्वास किया और उन झूठी बातों ने यहूदा के लोगों से परमेश्वर का अनुसरण करना छुड़ाया।