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सभोपदेशक 11:5 - नवीन हिंदी बाइबल

5 जैसे तू वायु का मार्ग नहीं जानता और न यह जानता है कि स्‍त्री के गर्भ में हड्डियाँ कैसे बढ़ती हैं, वैसे ही तू परमेश्‍वर का कार्य नहीं जानता जो सब कुछ रचता है।

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पवित्र बाइबल

5 हवा का रूख कहाँ होगा तुम नहीं जान सकते। तुम नहीं जानते कि माँ के गर्भ में बच्चा प्राण कैसे पाता है? इसी प्रकार तुम यह भी नहीं जान सकते कि परमेश्वर क्या करेगा? सब कुछ को घटित करने वाला तो वही है।

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Hindi Holy Bible

5 जैसे तू वायु के चलने का मार्ग नहीं जानता और किस रीति से गर्भवती के पेट में हड्डियां बढ़ती हैं, वैसे ही तू परमेश्वर का काम नहीं जानता जो सब कुछ करता है॥

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पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

5 जैसा तुम नहीं जानते हो कि गर्भवती के पेट के शिशु में प्राण कैसे पड़ जाता है, वैसे ही तुम परमेश्‍वर के कार्यों को नहीं समझ सकते, जो सबको बनाता है।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

5 जैसे तू वायु के चलने का मार्ग नहीं जानता और किस रीति से गर्भवती के पेट में हड्डियाँ बढ़ती हैं, वैसे ही तू परमेश्‍वर का काम नहीं जानता जो सब कुछ करता है।

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सरल हिन्दी बाइबल

5 जिस तरह तुम्हें हवा के मार्ग और गर्भवती स्त्री के गर्भ में हड्डियों के बनने के बारे में मालूम नहीं, उसी तरह सारी चीज़ों के बनानेवाले परमेश्वर के काम के बारे में तुम्हें मालूम कैसे होगा?

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सभोपदेशक 11:5
19 क्रॉस रेफरेंस  

हवा जिधर चाहती है उधर चलती है और तू उसकी आवाज़ सुनता है, परंतु नहीं जानता कि वह कहाँ से आती और किधर जाती है। प्रत्येक जो आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।”


हे यहोवा, तेरे कार्य कितने महान हैं! तेरे विचार बहुत गहरे हैं!


तब मैंने परमेश्‍वर के प्रत्येक कार्य को देखा और पाया कि मनुष्य उसे नहीं समझ सकता जो सूर्य के नीचे किया जाता है। चाहे मनुष्य उसे खोजने में कितना भी परिश्रम करे, फिर भी उसे न जान पाएगा; और बुद्धिमान चाहे कितना भी कहे कि मैं समझता हूँ, फिर भी उसे न समझ सकेगा।


आहा! परमेश्‍वर का धन, बुद्धि और ज्ञान कितना गहन है! उसके निर्णय कैसे अथाह और उसके मार्ग कैसे अगम्य हैं!


हे यहोवा, तेरे कार्य तो अनगिनित हैं। तूने इन सब को बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी संपदा से भरपूर है।


जो बहुत दूर और अत्यंत गहरा है, उसका भेद कौन पा सकता है?


हे यहोवा मेरे परमेश्‍वर, जो आश्‍चर्यकर्म और जो विचार तूने हमारे लिए किए हैं, वे तो बहुत हैं; तेरे तुल्य कोई नहीं। यदि मैं उनके विषय में बताऊँ और उनकी चर्चा करूँ तो वे इतने हैं कि उनकी गिनती नहीं हो सकती।


वायु दक्षिण की ओर बहती है, और उत्तर की ओर घूम जाती है; वह घूमती हुई आगे बढ़ती है, और फिर अपने चक्र में लौट आती है।


मैंने अपना मन लगाया कि जो कुछ आकाश के नीचे किया जाता है, उसकी खोज और छान-बीन बुद्धि से करूँ। यह दुखदाई कार्य है जिसे परमेश्‍वर ने मनुष्यों के लिए ठहराया है कि वे इसमें लगे रहें।


मैंने कार्य के उस बोझ को देखा जो परमेश्‍वर ने मनुष्य के लिए ठहराया है कि वह उसमें उलझा रहे।


उसने सब कुछ को ऐसा बनाया है कि वे अपने-अपने समय में सुंदर होते हैं। उसने मनुष्यों के मन में अनंतता का विचार भी रखा है, फिर भी वे उन कार्यों को समझ नहीं सकते जो परमेश्‍वर ने आदि से अंत तक किए हैं।


जो वायु को ताकता रहता है, वह बीज नहीं बो पाता; और जो बादलों को देखता रहता है, वह लवने नहीं पाता।


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