प्रकाशितवाक्य 9:20 - इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 201920 बाकी मनुष्यों ने जो उन महामारियों से न मरे थे, अपने हाथों के कामों से मन न फिराया, कि दुष्टात्माओं की, और सोने, चाँदी, पीतल, पत्थर, और काठ की मूर्तियों की पूजा न करें, जो न देख, न सुन, न चल सकती हैं। (1 इति. 34:25) अध्याय देखेंपवित्र बाइबल20 इस पर भी बाकी के ऐसे लोगों ने जो इन महा विनाशों से भी नहीं मारे जा सके थे उन्होंने अपने हाथों से किए कामों के लिए अब भी मन न फिराया तथा भूत-प्रेतों की अथवा सोने, चाँदी, काँसे, पत्थर और लकड़ी की उन मूर्तियों की उपासना नहीं छोड़ी, जो न देख सकती हैं, न सुन सकती हैं और न ही चल सकती हैं। अध्याय देखेंHindi Holy Bible20 और बाकी मनुष्यों ने जो उन मरियों से न मरे थे, अपने हाथों के कामों से मन न फिराया, कि दुष्टात्माओं की, और सोने और चान्दी, और पीतल, और पत्थर, और काठ की मूरतों की पूजा न करें, जो न देख, न सुन, न चल सकती हैं। अध्याय देखेंपवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)20 शेष मनुष्यों ने-जो इन विपत्तियों द्वारा नहीं मारे गये थे-अपने हाथों के कर्मों के लिए पश्चात्ताप नहीं किया। वे भूत-प्रेतों की पूजा करते रहे और सोना, चाँदी, पीतल, पत्थर और लकड़ी की उन देवमूर्तियों की भी, जो न तो देख सकती हैं, न सुन और चल सकती हैं। अध्याय देखेंपवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)20 बाकी मनुष्यों ने जो उन मरियों से न मरे थे, अपने हाथों के कामों से मन न फिराया, कि दुष्टात्माओं की, और सोने और चाँदी और पीतल और पत्थर और काठ की मूर्तियों की पूजा न करें जो न देख, न सुन, न चल सकती हैं; अध्याय देखेंनवीन हिंदी बाइबल20 बाकी बचे हुए लोगों ने, जो इन महामारियों से नहीं मरे थे, अपने हाथों के कार्यों से पश्चात्ताप नहीं किया कि वे दुष्टात्माओं की, और सोने, चाँदी, पीतल, पत्थर और लकड़ी की उन मूर्तियों की पूजा न करें, जो न देख सकती हैं, न सुन सकती हैं और न ही चल-फिर सकती हैं। अध्याय देखें |
वरन् तूने स्वर्ग के प्रभु के विरुद्ध सिर उठाकर उसके भवन के पात्र मँगवाकर अपने सामने रखवा लिए, और अपने प्रधानों और रानियों और रखैलों समेत तूने उनमें दाखमधु पिया; और चाँदी-सोने, पीतल, लोहे, काठ और पत्थर के देवता, जो न देखते न सुनते, न कुछ जानते हैं, उनकी तो स्तुति की, परन्तु परमेश्वर, जिसके हाथ में तेरा प्राण है, और जिसके वश में तेरा सब चलना फिरना है, उसका सम्मान तूने नहीं किया। (अय्यू. 12:10, भज. 115:4-8)