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गलातियों 3:21 - इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019

21 तो क्या व्यवस्था परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के विरोध में है? कदापि नहीं! क्योंकि यदि ऐसी व्यवस्था दी जाती जो जीवन दे सकती, तो सचमुच धार्मिकता व्यवस्था से होती।

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पवित्र बाइबल

21 क्या इसका यह अर्थ है कि व्यवस्था का विधान परमेश्वर के वचन का विरोधी है? निश्चित रूप से नहीं। क्योंकि यदि ऐसी व्यवस्था का विधान दिया गया होता जो लोगों में जीवन का संचार कर सकता तो वह व्यवस्था का विधान ही परमेश्वर के सामने धार्मिकता को सिद्ध करने का साधन बन जाता।

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Hindi Holy Bible

21 तो क्या व्यवस्था परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के विरोध में है? कदापि न हो क्योंकि यदि ऐसी व्यवस्था दी जाती जो जीवन दे सकती, तो सचमुच धामिर्कता व्यवस्था से होती।

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पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

21 तो क्‍या व्‍यवस्‍था और परमेश्‍वर की प्रतिज्ञाओं में विरोध है? कभी नहीं! यदि ऐसी व्‍यवस्‍था की घोषणा हुई होती, जो जीवन प्रदान करने में समर्थ थी, तो व्‍यवस्‍था के पालन द्वारा ही मनुष्‍य धार्मिक ठहरता।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

21 तो क्या व्यवस्था परमेश्‍वर की प्रतिज्ञाओं के विरोध में है? कदापि नहीं! क्योंकि यदि ऐसी व्यवस्था दी जाती जो जीवन दे सकती, तो सचमुच धार्मिकता व्यवस्था से होती।

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नवीन हिंदी बाइबल

21 तो क्या व्यवस्था परमेश्‍वर की प्रतिज्ञाओं के विरुद्ध है? कदापि नहीं! क्योंकि यदि ऐसी व्यवस्था दी गई होती जो जीवन प्रदान कर सकती थी तो वास्तव में धार्मिकता व्यवस्था से होती।

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गलातियों 3:21
18 क्रॉस रेफरेंस  

“वह आकर उन किसानों को नाश करेगा, और दाख की बारी दूसरों को सौंपेगा।” यह सुनकर उन्होंने कहा, “परमेश्वर ऐसा न करे।”


तो क्या हम व्यवस्था को विश्वास के द्वारा व्यर्थ ठहराते हैं? कदापि नहीं! वरन् व्यवस्था को स्थिर करते हैं।


कदापि नहीं! वरन् परमेश्वर सच्चा और हर एक मनुष्य झूठा ठहरे, जैसा लिखा है, “जिससे तू अपनी बातों में धर्मी ठहरे और न्याय करते समय तू जय पाए।” (भज. 51:4, भज. 116:11)


कदापि नहीं! नहीं तो परमेश्वर कैसे जगत का न्याय करेगा?


परन्तु इस्राएली; जो धार्मिकता की व्यवस्था की खोज करते हुए उस व्यवस्था तक नहीं पहुँचे।


और यदि मृत्यु की यह वाचा जिसके अक्षर पत्थरों पर खोदे गए थे, यहाँ तक तेजोमय हुई, कि मूसा के मुँह पर के तेज के कारण जो घटता भी जाता था, इस्राएली उसके मुँह पर दृष्टि नहीं कर सकते थे।


हम जो मसीह में धर्मी ठहरना चाहते हैं, यदि आप ही पापी निकलें, तो क्या मसीह पाप का सेवक है? कदापि नहीं!


मैं तो व्यवस्था के द्वारा व्यवस्था के लिये मर गया, कि परमेश्वर के लिये जीऊँ।


मैं परमेश्वर के अनुग्रह को व्यर्थ नहीं ठहराता, क्योंकि यदि व्यवस्था के द्वारा धार्मिकता होती, तो मसीह का मरना व्यर्थ होता।


पर ऐसा न हो, कि मैं और किसी बात का घमण्ड करूँ, केवल हमारे प्रभु यीशु मसीह के क्रूस का जिसके द्वारा संसार मेरी दृष्टि में और मैं संसार की दृष्टि में क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ।


विश्वास ही से नूह ने उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थीं, चेतावनी पाकर भक्ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया, और उसके द्वारा उसने संसार को दोषी ठहराया; और उस धार्मिकता का वारिस हुआ, जो विश्वास से होता है। (उत्प. 6:13-22, उत्प. 7:1)


इस प्रकार, पहली आज्ञा निर्बल; और निष्फल होने के कारण लोप हो गई।


(इसलिए कि व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं की) और उसके स्थान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिसके द्वारा हम परमेश्वर के समीप जा सकते हैं।


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