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अय्यूब 4 - पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)


प्रथम संवाद एलीपज का तर्क
( 4:1—14:22 )

1 तब तेमानी एलीपज ने कहा,

2 “यदि कोई तुझ से कुछ कहने लगे, तो क्या तुझे बुरा लगेगा? परन्तु बोले बिना कौन रह सकता है?

3 सुन, तू ने बहुतों को शिक्षा दी है, और निर्बल लोगों को बलवन्त किया है।

4 गिरते हुओं को तू ने अपनी बातों से सम्भाल लिया, और लड़खड़ाते हुए लोगों को तू ने बलवन्त किया।

5 परन्तु अब विपत्ति तो तुझी पर आ पड़ी, और तू निराश हुआ जाता है; उसने तुझे छुआ और तू घबरा उठा।

6 क्या परमेश्‍वर का भय ही तेरा आसरा नहीं? और क्या तेरा चालचलन जो खरा है तेरी आशा नहीं?

7 “क्या तुझे मालूम है कि कोई निर्दोष भी कभी नष्‍ट हुआ है? या कहीं सज्जन भी काट डाले गए?

8 मेरे देखने में तो जो पाप को जोतते और दु:ख बोते हैं, वही उसको काटते हैं।

9 वे परमेश्‍वर की श्‍वास से नष्‍ट होते, और उसके क्रोध के झोंके से भस्म होते हैं।

10 सिंह का गरजना और हिंसक सिंह का दहाड़ना बन्द हो जाता है, और जवान सिंहों के दाँत तोड़े जाते हैं।

11 शिकार न पाकर बलवान सिंह भी मर जाता है, और सिंहनी के बच्‍चे तितर बितर हो जाते हैं।

12 “एक बात चुपके से मेरे पास पहुँचाई गई, और उसकी कुछ भनक मेरे कान में पड़ी।

13 रात के स्वप्नों की चिन्ताओं के बीच जब मनुष्य गहरी निद्रा में रहते हैं,

14 मुझे ऐसी थरथराहट और कँपकँपी लगी कि मेरी सब हड्डियाँ तक हिल उठीं।

15 तब एक आत्मा मेरे सामने से होकर चली; और मेरी देह के रोएँ खड़े हो गए।

16 वह चुपचाप ठहर गई और मैं उसकी आकृति को पहिचान न सका। परन्तु मेरी आँखों के सामने कोई रूप था; पहिले सन्नाटा छाया रहा, फिर मुझे एक शब्द सुनाई पड़ा :

17 ‘क्या नाशमान मनुष्य परमेश्‍वर से अधिक धर्मी हो सकता है? क्या मनुष्य अपने सृजनहार से अधिक पवित्र हो सकता है?

18 देख, वह अपने सेवकों पर भरोसा नहीं रखता, और अपने स्वर्गदूतों को भी दोषी ठहराता है;

19 फिर जो मिट्टी के घरों में रहते हैं; और जिनकी नींव मिट्टी में डाली गई है, और जो पतंगे के समान पिस जाते हैं, उनकी क्या गणना।

20 वे भोर से साँझ तक नष्‍ट किए जाते हैं, वे सदा के लिये मिट जाते हैं, और कोई उनका विचार भी नहीं करता।

21 यदि उनके डेरे की डोरी उनके अन्दर ही अन्दर कट जाती, तो क्या वे बिना बुद्धि के ही मर न जाते?’

Hindi OV (Re-edited) Bible - पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible

Copyright © 2012 by The Bible Society of India

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