पुस्तक परिचय
प्रस्तुत ग्रंथ में सामूहिक आराधना तथा धार्मिक कर्मकांडों से सम्बन्धित ऐसे विधि-विधान संकलित हैं, जिनका प्रयोग प्राचीन इस्राएली समाज में होता था। ये धार्मिक विधि-विधान उन पुरोहितों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण थे, जो यरूशलेम के मंदिर में धार्मिक कृत्यों को सम्पन्न करते थे। इस्राएल के बारह कुलों में “लेवी” कुल इस धर्म-सेवा के लिए अर्पित था।
लेवीय व्यवस्था की मुख्य विषय-वस्तु है परमेश्वर की पवित्रता। इसी से सम्बन्धित हैं समस्त विधि-नियम और निषेध-आदेश। इनका तात्पर्य था कि इस्राएली समाज शुद्ध शरीर और हृदय से सच्चे परमेश्वर की आराधना करे तथा धर्मपरायण जीवन बिताए, जिससे “इस्राएल के पवित्र परमेश्वर” से उसका सम्बन्ध बना रहे। यह विशिष्ट पुरोहिती दृष्टिकोण, व्यवस्था-विवरण ग्रंथ को छोड़, समस्त पंचग्रंथ के विधि-संकलन में यहाँ-वहाँ दिखाई देता है।
प्रस्तुत ग्रंथ के अध्याय 19:18 के शब्द सर्वप्रचलित हैं, जिनका प्रभु येशु ने प्रयोग किया था, और उन्हें एक नया शीर्षक दिया था: “दूसरी प्रमुख आज्ञा यह है: अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो” ।
विषय-वस्तु की रूपरेखा
भेंट तथा बलि सम्बन्धी नियम 1:1−7:38
हारून वंश के पुरोहितों के अभिषेक के नियम 8:1−10:20
धार्मिक कर्मकांड की शुद्धता और अशुद्धता के नियम 11:1−15:33
प्रायश्चित दिवस 16:1-34
निजी जीवन तथा आराधना से सम्बन्धित पवित्रता के नियम 17:1−27:34