पुस्तक परिचय
“निर्गमन” का अर्थ है “प्रस्थान, बाहर निकलना” आदि। निर्गमन ग्रंथ में वर्णित प्रमुख घटना यही है कि मिस्र देश में सैकड़ों वर्षों के प्रवास के पश्चात् इस्राएली कौम मिस्र देश से प्रस्थान करती है। मिस्र देश में वे गुलाम थे। उस गुलामी से छुटकारा पाना और वहां से प्रस्थान करना, यह इस्राएली कौम के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है, और यह “मुक्ति इतिहास” की प्रथम कड़ी कहलाती है।
निर्गमन ग्रंथ के तीन खण्ड हैं :
(1) इब्रानी (इस्राएली) गुलामों का दासत्व से मुक्त होना, और मिस्र देश से प्रस्थान कर सीनय पर्वत तक की यात्रा करना;
(2) सीनय पर्वत पर परमेश्वर इस्राएली कौम से विधान (वाचा, व्यवस्थान) का संबंध स्थापित करता है। इस्राएलियों को इस विधान के माध्यम से नैतिक, सामाजिक तथा धार्मिक नियम प्राप्त होते हैं।
(3) निर्गमन ग्रंथ के तीसरे खण्ड में इस्राएली कौम के केन्द्रीय आराधना-स्थल के निर्माण, उसकी सामग्री, साज-सज्जा, पुरोहितों से सम्बन्धित विधि-परंपरा तथा परमेश्वर की आराधना-विधि का विस्तार से उल्लेख है।
निर्गमन ग्रंथ में वर्णित इन बातों के अतिरिक्त सर्वप्रमुख बात तो यह है कि परमेश्वर ने अपनी चुनी हुई कौम को दासत्व के जुए से विमुक्त किया, और उन्हें एक ही विधान में सुसम्बद्ध समाज के रूप में संयुक्त किया, और उन्हें भविष्य के लिए एक स्वर्णिम आशा प्रदान की।
निर्गमन ग्रंथ के प्रमुख नायक हैं मूसा। स्वयं परमेश्वर ने मूसा को चुना कि वह उसके निज लोगों को मिस्र देश की गुलामी से छुड़ायें और उनका नेतृत्व करें।
प्रस्तुत ग्रंथ का सर्वविदित अंश व्यवस्था की “दस आज्ञाएं” हैं, जिसका उल्लेख अध्याय 20 में किया गया है।
विषय-वस्तु की रूपरेखा
1. मिस्र देश के दासत्व से मुक्ति 1:1−18:27
(क) मिस्र देश में गुलामी 1:1-22
(ख) मूसा का जन्म और आरंभिक जीवन 2:1−4:31
(ग) मूसा और हारून मिस्र देश के फरओ (राजा) के दरबार में : दस विपत्तियां 5:1−11:10
(घ) पास्का (फसह) के पर्व की स्थापना तथा मिस्र देश से प्रस्थान 12:1−15:21
(ङ) लाल सागर से सीनय पर्वत तक की यात्रा 15:22−18:27
2. व्यवस्था की शिक्षाएं तथा विधान की स्थापना 19:1−24:18
3. विधान की मंजूषा, पवित्र निवास-स्थान (शिविर) तथा आराधना के विषय में निर्देश 25:1−40:38
[इस सामग्री के मध्य में, अध्याय 32-34 : ‘सोने के बछड़े’ का प्रसंग]