Biblia Todo Logo
ऑनलाइन बाइबिल
- विज्ञापनों -

मत्ती 5 - नवीन हिंदी बाइबल


पहाड़ी उपदेश

1 यीशु उस भीड़ को देखकर पहाड़ पर चढ़ गया और जब वह बैठ गया तो उसके शिष्य उसके पास आए;

2 और वह उन्हें यह कहते हुए उपदेश देने लगा :


धन्य वचन

3 “धन्य हैं वे जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।

4 धन्य हैं वे जो शोक करते हैं, क्योंकि वे सांत्वना पाएँगे।

5 धन्य हैं वे जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के उत्तराधिकारी होंगे।

6 धन्य हैं वे जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्‍त किए जाएँगे।

7 धन्य हैं वे जो दयावान हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।

8 धन्य हैं वे जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्‍वर को देखेंगे।

9 धन्य हैं वे जो मेल कराते हैं, क्योंकि वे परमेश्‍वर के पुत्र कहलाएँगे।

10 धन्य हैं वे जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।

11 “धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारी निंदा करें और सताएँ, तथा झूठ बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें।

12 आनंदित और मगन होना, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारा प्रतिफल बड़ा है; इसलिए कि उन्होंने उन भविष्यवक्‍ताओं को भी जो तुमसे पहले हुए, इसी प्रकार सताया था।


नमक और ज्योति

13 “तुम पृथ्वी के नमक हो, परंतु यदि नमक अपना स्वाद खो दे, तो वह किससे नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इसके कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए।

14 “तुम जगत की ज्योति हो। पहाड़ पर स्थित नगर छिप नहीं सकता।

15 लोग दीपक जलाकर टोकरी के नीचे नहीं बल्कि दीवट पर रखते हैं, और वह उस घर में सब लोगों को प्रकाश देता है।

16 उसी प्रकार अपनी ज्योति को मनुष्यों के सामने चमकने दो ताकि वे तुम्हारे भले कार्यों को देखकर तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है, महिमा करें।


व्यवस्था और यीशु

17 “यह न समझो कि मैं व्यवस्था या भविष्यवक्‍ताओं के लेखों को नष्‍ट करने आया हूँ; नष्‍ट करने नहीं, बल्कि उन्हें पूरा करने आया हूँ।

18 क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएँ, तब तक व्यवस्था में से एक मात्रा या एक बिंदु भी पूरा हुए बिना न टलेगा।

19 इसलिए जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़ेगा और वैसा ही मनुष्यों को सिखाएगा, वह स्वर्ग के राज्य में सब से छोटा कहलाएगा; परंतु जो कोई उनका पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में बड़ा कहलाएगा।

20 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्‍त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश नहीं कर पाओगे।


क्रोध पर शिक्षा

21 “तुमने सुना है कि पूर्वजों से कहा गया था : तू हत्या न करना ; और जो कोई हत्या करेगा, वह दंड के योग्य होगा।

22 परंतु मैं तुमसे कहता हूँ कि प्रत्येक जो अपने भाई परक्रोध करता है वह दंड के योग्य होगा; और जो कोई अपने भाई को ‘निकम्मा’ कहेगा, वह महासभा में दंड के योग्य होगा; और जो कोई ‘मूर्ख’ कहेगा, वह नरक की आग के योग्य ठहरेगा।

23 इसलिए यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहाँ तुझे स्मरण आए कि मेरे भाई के मन में मेरे विरुद्ध कुछ है,

24 तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे, और जाकर पहले अपने भाई से मेल-मिलाप कर ले, और तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।

25 जब तू अपने विरोधी के साथ मार्ग ही में हो, तो उससे शीघ्र मेल-मिलाप कर ले, कहीं ऐसा न हो कि विरोधी तुझे न्यायाधीश को सौंप दे, और न्यायाधीश सिपाही को, और तू बंदीगृह में डाल दिया जाए;

26 मैं तुझसे सच कहता हूँ, जब तक तू एक-एक पैसाचुका न दे, तब तक तू वहाँ से कभी छूट नहीं पाएगा।


व्यभिचार पर शिक्षा

27 “तुमने सुना है कि यह कहा गया था : तू व्यभिचार न करना।

28 परंतु मैं तुमसे कहता हूँ कि जो कोई किसी स्‍त्री को कामुकता से देखता है, वह अपने मन में उससे व्यभिचार कर चुका।

29 यदि तेरी दाहिनी आँख तेरे लिए ठोकर का कारण बनती है, तो उसे निकालकर अपने से दूर फेंक दे, क्योंकि तेरे लिए भला है कि तेरे अंगों में से एक नाश हो और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।

30 यदि तेरा दाहिना हाथ तेरे लिए ठोकर का कारण बनता है, तो उसे काटकर अपने से दूर फेंक दे, क्योंकि तेरे लिए भला है कि तेरे अंगों में से एक नाश हो और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।


तलाक पर शिक्षा

31 “यह कहा गया था : जो कोई अपनी पत्‍नी को तलाक देना चाहे, वह उसे त्याग-पत्र दे।

32 परंतु मैं तुमसे कहता हूँ कि जो कोई व्यभिचार को छोड़ किसी और कारण से अपनी पत्‍नी को तलाक देता है, वह उससे व्यभिचार करवाता है, और यदि कोई त्यागी हुई स्‍त्री से विवाह करता है, वह व्यभिचार करता है।


शपथ पर शिक्षा

33 “फिर तुमने सुना है कि पूर्वजों से कहा गया था : तू झूठी शपथ न खाना, परंतु प्रभु के लिए अपनी शपथ को पूरी करना।

34 परंतु मैं तुमसे कहता हूँ कि कभी शपथ न खाना; न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्‍वर का सिंहासन है;

35 न धरती की, क्योंकि वह उसके पैरों की चौकी है; न यरूशलेम की, क्योंकि वह महाराजाधिराज का नगर है;

36 और न ही अपने सिर की शपथ खाना, क्योंकि तू एक बाल को भी सफ़ेद या काला नहीं कर सकता।

37 परंतु तुम्हारी बात ‘हाँ’ की ‘हाँ’ या ‘न’ की ‘न’ हो; और इससे अधिक बात उस दुष्‍ट की ओर से होती है।


बदले की भावना पर शिक्षा

38 “तुमने सुना है कि कहा गया था : आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत।

39 परंतु मैं तुमसे कहता हूँ कि दुष्‍ट का सामना न करना; परंतु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी ओर दूसरा भी फेर दे;

40 और जो तुझ पर दोष लगाकर तेरा कुरता लेना चाहे, उसे अपना चोगा भी दे दे।

41 जो कोई तुझे एक किलोमीटर बेगार में ले जाए, उसके साथ दो किलोमीटर चला जा।

42 जो तुझसे माँगे, उसे दे, और जो तुझसे उधार लेना चाहे, उससे मुँह न फेर।


शत्रुओं से प्रेम

43 “तुमने सुना है कि कहा गया था : तू अपने पड़ोसी से प्रेम रखना , और अपने शत्रु से घृणा करना।

44 परंतु मैं तुमसे कहता हूँ, अपने शत्रुओं से प्रेम रखो औरजोतुम्हें सताते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो,

45 ताकि तुम अपने पिता की, जो स्वर्ग में है, संतान बन जाओ क्योंकि वह भले और बुरे दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी दोनों पर मेंह बरसाता है।

46 क्योंकि यदि तुम उन्हीं से प्रेम रखो जो तुमसे प्रेम रखते हैं, तो तुम्हारा क्या प्रतिफल होगा? क्या कर वसूलनेवाले भी ऐसा नहीं करते?

47 यदि तुम अपने भाइयों का ही अभिवादन करते हो, तो कौन सा बड़ा कार्य करते हो? क्या गैरयहूदीभी ऐसा नहीं करते?

48 इसलिए तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गिक पिता सिद्ध है।

HINDI STANDARD BIBLE©

Copyright © 2023 by Global Bible Initiative

Global Bible Initiative
हमारे पर का पालन करें:



विज्ञापनों