मत्ती 3 - नवीन हिंदी बाइबलयूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का प्रचार 1 उन दिनों यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला आकर यहूदिया के जंगल में प्रचार करने लगा, 2 “पश्चात्ताप करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” 3 यह वही था जिसके विषय में यशायाह भविष्यवक्ता के द्वारा कहा गया था : एक आवाज़ जंगल में पुकार रही है, “प्रभु का मार्ग तैयार करो, उसके पथ सीधे करो।” 4 यूहन्ना तो ऊँट के बालों का वस्त्र पहनता और अपनी कमर पर चमड़े का पट्टा बाँधा करता था, तथा उसका भोजन टिड्डियाँ और जंगली शहद था। 5 तब यरूशलेम और सारे यहूदिया और यरदन के आस-पास के सारे क्षेत्रों के लोग निकलकर उसके पास आने लगे, 6 और अपने पापों का अंगीकार करते हुए यरदन नदी में उससे बपतिस्मा लेने लगे। 7 परंतु जब उसने बहुत से फरीसियों और सदूकियों को बपतिस्मा लेने के लिए अपनी ओर आते देखा तो उनसे कहा, “हे साँप के बच्चो, तुम्हें आने वाले प्रकोप से भागने की चेतावनी किसने दी? 8 इसलिए पश्चात्ताप के योग्य फल लाओ 9 और अपने मन में यह मत सोचो, ‘हमारा पिता अब्राहम है,’ क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि परमेश्वर इन पत्थरों से भी अब्राहम के लिए संतान उत्पन्न कर सकता है। 10 अब कुल्हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा है, और प्रत्येक पेड़ जो अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंक दिया जाता है। 11 मैं तो तुम्हें पश्चात्ताप के लिए पानी से बपतिस्मा देता हूँ; परंतु जो मेरे बाद आने वाला है, वह मुझसे अधिक सामर्थी है, मैं उसके जूते उठाने के भी योग्य नहीं हूँ; वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा। 12 उसका सूप उसके हाथ में है, और वह अपना खलिहान अच्छी तरह से साफ़ करेगा, और अपने गेहूँ को खत्ते में इकट्ठा करेगा, परंतु भूसी को वह कभी न बुझनेवाली आग में भस्म करेगा।” यीशु का बपतिस्मा 13 तब यीशु यरदन के तट पर यूहन्ना से बपतिस्मा लेने के लिए गलील से उसके पास आया। 14 परंतु यूहन्ना यीशु को यह कहते हुए रोकने लगा, “मुझे तो तुझसे बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है, और तू मेरे पास आया है?” 15 इस पर यीशु ने उससे कहा,“अभी ऐसा ही होने दे, क्योंकि इस प्रकार सारी धार्मिकता को पूरा करना हमारे लिए उचित है।” तब उसने उसकी बात मान ली। 16 और यीशु बपतिस्मा लेकर तुरंत पानी में से ऊपर आया; और देखो, उसके लिए आकाश खुल गया, और उसने परमेश्वर के आत्मा को कबूतर के समान उतरते और अपने ऊपर आते हुए देखा। 17 और देखो, आकाश से एक आवाज़ आई, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अति प्रसन्न हूँ।” |