भजन संहिता 74 - नवीन हिंदी बाइबलइस्राएल के लिए प्रार्थना आसाफ का मश्कील। 1 हे परमेश्वर, तूने हमें सदा के लिए क्यों त्याग दिया है? तेरी क्रोधाग्नि का धुआँ तेरे चरागाह की भेड़ों के विरुद्ध क्यों उठ रहा है? 2 अपनी मंडली को स्मरण कर, जिसे तूने प्राचीनकाल में मोल लेकर अपनी मीरास का गोत्र होने के लिए छुड़ाया था; और इस सिय्योन पर्वत को भी स्मरण कर, जिस पर तूने वास किया था! 3 अपने कदम अनंत खंडहरों अर्थात् उस संपूर्ण विनाश की ओर बढ़ा, जो शत्रु ने पवित्रस्थान में किया है। 4 तेरे बैरी तेरे सभा-स्थल के मध्य गरजे हैं, उन्होंने चिह्नों के रूप में अपनी ध्वजाओं को गाड़ दिया है। 5 वे उन मनुष्यों के समान हैं जो घने वन के वृक्षों पर कुल्हाड़े चलाते हैं; 6 और अब वे कुल्हाड़ी और हथौड़ों से उसकी सब नक्काशी को तहस-नहस करते हैं। 7 उन्होंने तेरे पवित्रस्थान को आग में झोंक दिया है, और तेरे नाम के निवासस्थान को गिराकर अशुद्ध कर डाला है। 8 उन्होंने मन में कहा है, “हम उन्हें पूरी तरह से कुचल डालें।” उन्होंने इस देश में परमेश्वर के सब सभा-स्थलों को जला डाला है। 9 हमें अपने चिह्न दिखाई नहीं देते; अब कोई भविष्यवक्ता नहीं रहा, और न हमारे बीच कोई जानता है कि यह दशा कब तक रहेगी। 10 हे परमेश्वर, बैरी कब तक निंदा करता रहेगा? क्या शत्रु तेरे नाम का तिरस्कार सदा करता रहेगा? 11 तू अपना हाथ, हाँ अपना दाहिना हाथ क्यों रोक लेता है? उसे अपने सीने से हटा और उनका नाश कर दे। 12 परमेश्वर तो प्राचीनकाल से मेरा राजा है, वह पृथ्वी पर छुटकारे के कार्य करता आया है। 13 तूने तो अपने सामर्थ्य से समुद्र को दो भाग कर दिया; तूने जल में मगरमच्छों के सिर फोड़ डाले। 14 तूने लिव्यातान के सिर कुचले, और उसे वन-पशुओं का आहार बनने के लिए दे दिया। 15 तूने सोतों और जल-धाराओं को खोला; तूने बारहमासी नदियों को सुखा डाला। 16 दिन तेरा है, रात भी तेरी है; तूने ही सूर्य और चंद्रमा को स्थिर किया है। 17 तूने तो पृथ्वी की सब सीमाओं को ठहराया; ग्रीष्मकाल और शीतकाल तूने ही ठहराए हैं। 18 हे यहोवा, स्मरण कर कि शत्रु ने तेरी निंदा की है, और मूर्ख लोगों ने तेरे नाम का तिरस्कार किया है। 19 अपनी पंडुकी का प्राण जंगली पशु को न सौंप; अपने दीन जनों को सदा के लिए न भूल। 20 अपनी वाचा की सुधि ले, क्योंकि देश के अंधेरे स्थान अत्याचार के अड्डे बन गए हैं। 21 पिसे हुए व्यक्ति को अपमानित होकर लौटना न पड़े; दीन और दरिद्र लोग तेरे नाम की स्तुति करें। 22 हे परमेश्वर, उठ, अपना पक्ष प्रस्तुत कर; तेरी निंदा जो मूर्ख दिन भर करता रहता है, उसे स्मरण कर। 23 अपने बैरियों की ऊँची आवाज़ को, और अपने विरोधियों के निरंतर बढ़ते कोलाहल को न भूल। |