भजन संहिता 73 - नवीन हिंदी बाइबलतीसरा भाग परमेश्वर के मार्ग खरे हैं आसाफ का भजन। 1 परमेश्वर सचमुच इस्राएल के लिए अर्थात् शुद्ध मनवालों के लिए भला है। 2 परंतु मेरे पैर तो लड़खड़ाने पर थे; मेरे कदम फिसलने पर थे। 3 क्योंकि जब मैंने दुष्टों को फलते-फूलते देखा, तो उन घमंडियों के प्रति ईर्ष्या से भर उठा। 4 उनकी मृत्यु में तो वेदनाएँ नहीं होतीं, और उनकी देह हृष्ट-पुष्ट होती है। 5 उन्हें दूसरे मनुष्यों के समान कष्ट नहीं होता, और न अन्य मनुष्यों के समान उन पर विपत्ति पड़ती है। 6 इस कारण अहंकार उनके गले का हार बना है; और हिंसा उन्हें वस्त्र के समान ढाँपती है। 7 उनकी आँखों पर चरबी छाई है; उनके मन की व्यर्थ कल्पनाएँ उमड़ती हैं। 8 वे ठट्ठा करते हैं और दुष्टता से अन्याय की बात बोलते हैं; वे अहंकार के साथ बोलते हैं। 9 उन्होंने अपना मुँह स्वर्ग के विरुद्ध खोला है, और उनकी जीभ पृथ्वी पर अकड़कर चलती है। 10 इसलिए उसकी प्रजा उनकी ओर फिरेगी, और वे भरपूरी के साथ जल पीएँगे। 11 वे कहते हैं, “परमेश्वर कैसे जानता है? क्या परमप्रधान कुछ जानता है?” 12 देखो! ये दुष्ट लोग हैं, फिर भी ये सदा आराम से रहकर धन-संपत्ति बटोरते रहते हैं। 13 निश्चय मैंने अपने हृदय को व्यर्थ ही शुद्ध रखा, और व्यर्थ अपने हाथों को निर्दोषता में धोया है; 14 क्योंकि मैं दिन भर मार खाता आया हूँ, और प्रति भोर मेरी ताड़ना होती आई है। 15 यदि मैं कहता कि मैं ऐसा ही कहूँगा, तो देख, मैंने तेरे लोगों के साथ विश्वासघात किया होता। 16 जब मैंने सोचा कि इसे कैसे समझूँ, तो यह मेरी दृष्टि में तब तक कठिन समस्या बनी रही, 17 जब तक कि मैंने परमेश्वर के पवित्रस्थान में जाकर उन लोगों के परिणाम को न समझ लिया। 18 निश्चय तू उन्हें फिसलनेवाले स्थानों में रखता है, और गिराकर उनका नाश कर देता है। 19 क्षण भर में ही वे कैसे उजड़ गए हैं! उनका अंत हो गया है; वे भयभीत होकर मर मिटे हैं। 20 जैसे कोई जाग उठने पर स्वप्न को तुच्छ जानता है, वैसे ही हे प्रभु, जब तू जाग उठेगा, तो उन्हें छाया के समान तुच्छ जानेगा। 21 जब मेरा मन कड़वा था, और मेरा अंतःकरण छिद गया था, 22 तब मैं निर्बुद्धि और नासमझ था, और तेरे सम्मुख पशु के समान था। 23 फिर भी मैं निरंतर तेरे साथ रहा; तूने मेरा दाहिना हाथ थामे रखा। 24 तू अपनी सम्मति से मेरी अगुवाई करेगा, और फिर महिमा में मुझे ग्रहण कर लेगा। 25 स्वर्ग में मेरा और कौन है? तुझे छोड़ मैं पृथ्वी पर कुछ और नहीं चाहता। 26 चाहे मेरा शरीर और मन दोनों हार जाएँ, फिर भी परमेश्वर सदा के लिए मेरे हृदय का बल और मेरा भाग है। 27 देख, जो तुझसे दूर हैं, वे नाश होंगे; जो तेरे प्रति विश्वासयोग्य नहीं हैं, उन सब को तूने नष्ट कर दिया है। 28 परंतु मेरे लिए परमेश्वर के निकट रहना भला है। मैंने प्रभु यहोवा को अपना शरणस्थान माना है, ताकि मैं उसके सब कार्यों का वर्णन करूँ। |