भजन संहिता 44 - नवीन हिंदी बाइबलइस्राएल की शिकायत संगीत निर्देशक के लिए कोरहवंशियों का मश्कील। 1 हे परमेश्वर, हमने अपने कानों से सुना है, हमारे बापदादों ने हमें यह बताया है कि तूने उनके दिनों में अर्थात् प्राचीनकाल में कैसे बड़े-बड़े कार्य किए हैं। 2 तूने अपने ही हाथ से विभिन्न जातियों को खदेड़कर उन्हें बसाया; तूने देश-देश के लोगों को कुचलकर उन्हें फैलाया। 3 उन्होंने न तो अपनी तलवार से इस देश पर अधिकार किया, और न ही वे अपने भुजबल से विजयी हुए; परंतु यह तो तेरे दाहिने हाथ, और तेरी भुजा, और तेरे मुख के प्रकाश से हुआ, क्योंकि तू उनको चाहता था। 4 हे परमेश्वर, तू ही मेरा राजा है; याकूब की विजय की आज्ञा दे। 5 तेरी सहायता से हम अपने शत्रुओं को पीछे खदेड़ देंगे। तेरे नाम से हम अपने विरोध में उठनेवालों को कुचल डालेंगे। 6 क्योंकि मैं अपने धनुष पर भरोसा नहीं रखता, और न मेरी तलवार मुझे विजय दिलाती है। 7 बल्कि तूने ही हमें हमारे शत्रुओं से बचाया है, और जो हमसे घृणा रखते हैं उन्हें लज्जित किया है। 8 हम निरंतर अपने परमेश्वर की बड़ाई करते रहते हैं; हम तेरे नाम का धन्यवाद सदा-सर्वदा करते रहेंगे। सेला। 9 परंतु अब तूने हमें त्याग दिया और अपमानित किया है; तू हमारी सेनाओं के साथ आगे नहीं जाता। 10 तूने हमें शत्रुओं को पीठ दिखाने को विवश कर दिया, और हमारे बैरियों ने हमसे लूट-मार की है। 11 तूने हमें भोजन के लिए कटनेवाली भेड़ों के समान कर दिया है, और हमें जाति-जाति में तितर-बितर किया है। 12 तूने अपनी प्रजा को मुफ़्त में बेच दिया है, और उनके बिकने से तुझे कोई लाभ नहीं हुआ। 13 तू हमारे पड़ोसियों में हमें निंदा का पात्र बनाता है, और हमारे चारों ओर रहनेवालों के लिए हमें हँसी और ठट्ठे का कारण बनाता है। 14 तू सब जातियों के मध्य हमें घृणा का पात्र बनाता है, और देश-देश के लोग सिर हिला हिलाकर हम पर हँसते हैं। 15 दिन भर मेरा अपमान होता है। 16 बुरा-भला कहनेवालों और निंदा करनेवालों के कारण तथा शत्रु और बदला लेनेवालों के कारण लज्जा ने मेरे मुख को ढाँप लिया है। 17 हम पर यह सब बीता, फिर भी हम तुझे नहीं भूले और न तेरी वाचा के प्रति हमने विश्वासघात किया। 18 हमारे मन न बहके, और न हमारे कदम तेरे मार्ग से भटके, 19 फिर भी तूने हमें गीदड़ों के स्थान में कुचल दिया है, और घोर अंधकार से हमें ढाँप दिया है। 20 यदि हम अपने परमेश्वर का नाम भूल जाते, या किसी पराए देवता की ओर अपने हाथ फैलाते, 21 तो क्या परमेश्वर इसे नहीं जानता, क्योंकि वह तो मन की गुप्त बातों को जानता है। 22 परंतु हम दिन भर तेरे निमित्त मार डाले जाते हैं, और वध होनेवाली भेड़ों के समान समझे जाते हैं। 23 हे प्रभु, जाग! तू क्यों सोता है? उठ! हमें सदा के लिए न त्याग। 24 तू अपना मुँह क्यों छिपा लेता है? और हमारे दुःख और सताए जाने को क्यों भूल जाता है? 25 हमारा प्राण धूल में पड़ा है; हमारी देह भूमि पर औंधे मुँह पड़ी है। 26 हे परमेश्वर उठ! हमारी सहायता कर, और अपनी करुणा के कारण हमें छुड़ा ले। |