यूहन्ना का प्रकाशितवाक्य
प्रकाशितवाक्य की पुस्तक का लेखक प्रेरित यूहन्ना है (1:1,4,9; 22:8)। इस पुस्तक के लिखे जाने के समय मसीही अपने विश्वास के कारण बड़े सताव से होकर जा रहे थे। इस समय के दौरान रोमी सम्राट की उपासना को बलपूर्वक लागू किया जा रहा था, और मसीही लोग जो कैसर को नहीं बल्कि यीशु मसीह को प्रभु मानते थे, बड़े विरोध का सामना कर रहे थे।
यूहन्ना विश्वासियों को उत्साहित करते हुए कहता है कि यीशु मसीह ही “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है” (19:16)। वह अपने पाठकों को बताता है कि परमेश्वर और शैतान के बीच होने वाला अंतिम युद्ध अब निकट है, इसलिए शैतान अब विश्वासियों के विरुद्ध सताव को बढ़ाएगा, परंतु उन्हें मृत्यु का सामना करते हुए भी दृढ़ खड़े रहना है। परमेश्वर उन्हें हर आत्मिक क्षति से सुरक्षित रखेगा और जब मसीह का पुनरागमन होगा तो वह उन्हें विश्वासयोग्य ठहराकर अनंत महिमा में प्रवेश कराएगा, परंतु दुष्ट लोग हमेशा-हमेशा के लिए नष्ट किए जाएँगे। इस पुस्तक को लिखने में यूहन्ना का उद्देश्य अपने पाठकों को आशा, प्रोत्साहन, तथा स्थिरता प्रदान करना है ताकि वे कष्टों और क्लेशों के दौरान विश्वासयोग्य बने रहें।
इस पुस्तक के एक बड़े भाग में हम प्रतीकात्मक भाषा-शैली में प्रकाशनों और दर्शनों की कई श्रृंखलाओं को पाते हैं। यद्यपि इस पुस्तक के अर्थों और इसकी व्याख्याओं के संबंध में अलग-अलग मत पाए जाते हैं, फिर भी इसका मुख्य विषय स्पष्ट है : यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर शैतान सहित अपने सब शत्रुओं को पराजित करेगा, और अपने विश्वासयोग्य लोगों को नए आकाश और नई पृथ्वी की आशिषें प्रदान करेगा।
रूपरेखा
1. भूमिका 1:1–8
2. आरंभिक दर्शन और सात कलीसियाओं को पत्र 1:9—3:22
3. सिंहासन, मुहरबंद पुस्तक और मेमना 4:1—5:14
4. सात मुहरें 6:1—8:1
5. सात तुरहियाँ 8:2—11:19
6. स्त्री, बालक और अजगर 12:1–18
7. समुद्र और पृथ्वी में से निकलनेवाले दो पशु 13:1–18
8. अन्य दर्शन 14:1—15:8
9. परमेश्वर के प्रकोप के सात कटोरे 16:1–21
10. बड़ी वेश्या बेबीलोन और उसका पतन 17:1—19:5
11. मेमने का विवाह 19:6–10
12. मसीह का पुनरागमन 19:11–21
13. शैतान का विनाश और न्याय का बड़ा श्वेत सिंहासन 20:1–15
14. नया आकाश, नई पृथ्वी और नया यरूशलेम 21:1—22:5
15. उपसंहार 22:6–21