कुरिंथियों के नाम प्रेरित पौलुस की पहली पत्री
प्रेरित पौलुस सर्वमान्य रूप से कुरिंथियों की पहली पत्री का लेखक है। कुरिंथुस नगर प्राचीन यूनान का सबसे महत्वपूर्ण नगर था, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, अनैतिक कार्यों, वैभवशाली संस्कृति और मूर्तिपूजा के लिए जाना जाता था। प्रेरित पौलुस ने इस कलीसिया की स्थापना की थी (प्रेरित 18:1–17)। इस पत्री को पौलुस ने अपनी तीसरी प्रचार यात्रा के दौरान इफिसुस से लिखा था (16:7–9)। पौलुस ने कुरिंथियों की कलीसिया के नाम दो पत्रियाँ लिखीं, और दोनों में वह इसे परमेश्वर की कलीसिया कहकर संबोधित करता है (1:2; 2 कुरिंथियों 1:1)।
कुरिंथियों की पत्री एक ऐसी कलीसिया की समस्याओं, दबावों और संघर्षों को प्रकट करती है जिसे सांसारिकता में लिप्त समाज में से निकलकर पवित्र होने के लिए बुलाया गया है। पौलुस कुरिंथियों की कलीसिया की जीवन-शैली से संबंधित कई प्रश्नों को संबोधित करता है, जैसे : दलबंदी, एक दूसरे पर मुकदमेबाजी, यौन अनैतिकता, आपत्तिजनक रीति-रिवाज़, प्रभु-भोज का दुरुपयोग, कलीसियाई प्रबंधन और आत्मिक वरदान का उपयोग, और पुनरुत्थान से संबंधित अवधारणा। अध्याय 13 में पौलुस प्रेम को परिभाषित करता है और उसे सब वरदानों में से सबसे उत्तम वरदान बताता है। यह इस पुस्तक का सबसे प्रसिद्ध अध्याय भी है।
पौलुस इस पत्री में पवित्र आत्मा को अपने हृदय में अधिकाई से बसाने पर बल देता है, और बताता है कि हमारी (विश्वासियों की) देह परमेश्वर का मंदिर है (3:16, 17; 6:19, 20)।
रूपरेखा
1. भूमिका 1:1–9
2. कलीसिया में दलबंदी 1:10—4:21
3. कलीसिया में अनैतिकता और आपसी झगड़े 5:1—6:20
4. विवाह के संबंध में संयम और सलाह 7:1–40
5. मूर्तियों पर चढ़ाए गए बलिदान 8:1—11:1
6. कलीसियाई जीवन से संबंधित निर्देश 11:2—14:40
7. यीशु और विश्वासियों का पुनरुत्थान 15:1–58
8. उपसंहार 16:1–24