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नीतिवचन 12:12 - पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

दुष्‍ट जन बुरे लोगों के जाल की अभिलाषा करते हैं, परन्तु धर्मियों की जड़ हरी भरी रहती है।

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पवित्र बाइबल

दुष्ट जन पापियों की लूट को चाहते हैं, किन्तु धर्मी जन की जड़ हरी रहती है।

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Hindi Holy Bible

दुष्ट जन बुरे लोगों के जाल की अभिलाषा करते हैं, परन्तु धर्मियों की जड़ हरी भरी रहती है।

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पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

दुर्जनों का सुदृढ़ गढ़ भी ढह जाता है; पर धार्मिक मनुष्‍य की जड़ें गहरी होती हैं।

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नवीन हिंदी बाइबल

दुष्‍ट जन बुरे लोगों की लूट की लालसा करते हैं, परंतु धर्मियों की जड़ फलवंत होती है।

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सरल हिन्दी बाइबल

दुष्ट बुराइयों द्वारा लूटी गई संपत्ति की लालसा करता है, किंतु धर्मी की जड़ फलवंत होती है.

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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019

दुष्ट जन बुरे लोगों के लूट के माल की अभिलाषा करते हैं, परन्तु धर्मियों की जड़ें हरी भरी रहती है।

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नीतिवचन 12:12
18 क्रॉस रेफरेंस  

वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है, और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।


जैसा सिंह अपनी झाड़ी में वैसा ही वह भी छिपकर घात में बैठा करता है; वह दीन को पकड़ने के लिये घात लगाए रहता है, वह दीन को अपने जाल में फँसाकर घसीट लाता है, तब उसे पकड़ लेता है।


अन्य जातिवालों ने जो गड़हा खोदा था, उसी में वे आप गिर पड़े; जो जाल उन्होंने लगाया था, उस में उन्हीं का पाँव फँस गया।


धनी का धन उसका दृढ़ नगर है, परन्तु कंगाल की निर्धनता उसके विनाश का कारण है।


धर्मी का प्रतिफल जीवन का वृक्ष होता है, और बुद्धिमान मनुष्य लोगों के मन को मोह लेता है।


दुष्‍ट जन बुराई की लालसा जी से करता है, वह अपने पड़ोसी पर अनुग्रह की दृष्‍टि नहीं करता।


भविष्य में याकूब जड़ पकड़ेगा, और इस्राएल फूले–फलेगा, और उसके फलों से जगत भर जाएगा।


यहूदा के घराने के बचे हुए लोग फिर जड़ पकड़ेंगे और फले–फूलेंगे;


भक्‍त लोग पृथ्वी पर से नष्‍ट हो गए हैं, और मनुष्यों में एक भी सीधा जन नहीं रहा; वे सब के सब हत्या के लिये घात लगाते, और जाल लगाकर अपने अपने भाई का आहेर करते हैं।


तुम ने मुझे नहीं चुना परन्तु मैं ने तुम्हें चुना है और तुम्हें नियुक्‍त किया कि तुम जाकर फल लाओ और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से माँगो, वह तुम्हें दे।


मैं दाखलता हूँ : तुम डालियाँ हो। जो मुझ में बना रहता है और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।


परन्तु अब पाप से स्वतंत्र होकर और परमेश्‍वर के दास बनकर तुम को फल मिला जिससे पवित्रता प्राप्‍त होती है, और उसका अन्त अनन्त जीवन है।