अपने राज्य-काल के उन्तालीसवें वर्ष में उसके पैरों में रोग हो गया। यह रोग बढ़कर घातक हो गया। अपनी इस बीमारी में भी उसने प्रभु को नहीं ढूंढ़ा, बल्कि वैद्यों से इलाज करवाया।
लूका 8:43 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) एक स्त्री बारह वर्ष से रक्तस्राव से पीड़ित थी। वह अपनी सारी जीविका वैद्यों पर खर्च कर चुकी थी, पर कोई भी उसे स्वस्थ नहीं कर सका था। पवित्र बाइबल वहीं एक स्त्री थी जिसे बारह साल से खून बह रहा था। जो कुछ उसके पास था, उसने चिकित्सकों पर खर्च कर दिया था, पर वह किसी से भी ठीक नहीं हो पायी थी। Hindi Holy Bible और एक स्त्री ने जिस को बारह वर्ष से लोहू बहने का रोग था, और जो अपनी सारी जिविका वैद्यों के पीछे व्यय कर चुकी थी और तौभी किसी के हाथ से चंगी न हो सकी थी। पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) एक स्त्री ने जिस को बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था, और जो अपनी सारी जीविका वैद्यों के पीछे व्यय कर चुकी थी, तौभी किसी के हाथ से चंगी न हो सकी थी, नवीन हिंदी बाइबल एक स्त्री थी जो बारह वर्ष से रक्तस्राव से पीड़ित थी। वह अपनी सारी जीविका वैद्यों पर व्यय कर चुकी थी, फिर भी कोई उसे स्वस्थ नहीं कर सका था। सरल हिन्दी बाइबल वहां बारह वर्ष से लहूस्राव-पीड़ित एक स्त्री थी. उसने अपनी सारी जीविका वैद्यों पर खर्च कर दी थी, पर वह किसी भी इलाज से स्वस्थ न हो पाई थी. इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 और एक स्त्री ने जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था, और जो अपनी सारी जीविका वैद्यों के पीछे व्यय कर चुकी थी और फिर भी किसी के हाथ से चंगी न हो सकी थी, |
अपने राज्य-काल के उन्तालीसवें वर्ष में उसके पैरों में रोग हो गया। यह रोग बढ़कर घातक हो गया। अपनी इस बीमारी में भी उसने प्रभु को नहीं ढूंढ़ा, बल्कि वैद्यों से इलाज करवाया।
क्योंकि सब ने अपनी समृद्धि से कुछ चढ़ाया, परन्तु इसने तंगी में रहते हुए भी, इसके पास जो कुछ था, वह सब अर्थात् अपनी सारी जीविका ही अर्पित कर दी!”
वह जहाँ कहीं उसे पकड़ती है, उसे वहीं पटक देती है। वह फेन उगलता है, दाँत पीसता है और अकड़ जाता है। मैंने आपके शिष्यों से उसे निकालने को कहा, परन्तु वे ऐसा नहीं कर सके।”
वहाँ एक स्त्री थी। उसे अठारह वर्ष से दुर्बल करने वाली आत्मा लगी थी। वह झुककर दुहरी हो गई थी और किसी भी तरह सीधी नहीं हो पाती थी।
शैतान ने इस स्त्री को, अब्राहम की इस पुत्री को इतने वर्षों से, अठारह वर्षों से बाँध रखा था, तो क्या इसे विश्राम के दिन उस बन्धन से छुड़ाना उचित नहीं था?”
येशु ज्यों ही भूमि पर उतरे, उस नगर का एक भूतग्रस्त मनुष्य उनके पास आया। वह बहुत दिनों से कपड़े नहीं पहनता था और घर में नहीं, बल्कि कबरों में रहा करता था।
क्योंकि उसकी लगभग बारह वर्ष की इकलौती बेटी मरने पर थी। येशु उसके साथ चले। रास्ते में भीड़ चारों ओर से येशु को दबा ही रही थी।
उसने पीछे से आ कर येशु के वस्त्र के सिरे को छू लिया और उसका रक्तस्राव उसी क्षण बन्द हो गया।
किन्तु अब यह कैसे देखने लगा है, हम यह नहीं जानते। हम यह भी नहीं जानते कि किसने इसकी आँखें खोली हैं। यह सयाना है, इसी से पूछ लीजिए। यह अपने विषय में स्वयं ही बताएगा।”
लोग एक मनुष्य को ले जा रहे थे, जो जन्म से लँगड़ा था। वे उसे प्रतिदिन ला कर मन्दिर के ‘सुन्दर’ नामक फाटक के पास छोड़ देते थे, जिससे वह मन्दिर के अन्दर जाने वालों से भीख माँग सके।
जिस मनुष्य को उस आश्चर्य कर्म द्वारा स्वास्थ्य-लाभ हुआ था, उसकी उम्र चालीस वर्ष से अधिक थी।