मत्ती 15:11 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) जो मुँह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता; बल्कि जो मुँह से बाहर निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।” पवित्र बाइबल मनुष्य के मुख के भीतर जो जाता है वह उसे अपवित्र नहीं करता, बल्कि उसके मुँह से निकला हुआ शब्द उसे अपवित्र करता है।” Hindi Holy Bible जो मुंह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुंह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) जो मुँह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुँह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।” नवीन हिंदी बाइबल जो मुँह में जाता है वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, बल्कि जो मुँह से निकलता है वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।” सरल हिन्दी बाइबल वह, जो मनुष्य के मुख में प्रवेश करता है, मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, परंतु उसे अशुद्ध वह करता है, जो उसके मुख से निकलता है.” इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 जो मुँह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुँह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।” |
प्रत्येक मनुष्य अपने पड़ोसी से झूठ बोलता है, वे चाटुकार ओंठों से दुरंगी बातें करते हैं।
‘तूने किस की ओर व्यंग्य-बाण छोड़े थे? तूने किसको गाली दी थी? तूने किसके विरुद्ध आवाज उठाई थी? तूने अहंकार से किसको आंख दिखाई थी? क्या मुझे, इस्राएल के पवित्र परमेश्वर को?
तब शिष्य येशु के पास आ कर उन से बोले, “क्या आप जानते हैं कि आपके इस कथन से फरीसियों को बुरा लगा है?”
ऐसा कुछ नहीं है, जो बाहर से मनुष्य में प्रवेश कर उसे अशुद्ध कर सके; बल्कि जो मनुष्य में से बाहर निकलता है, वही उसे अशुद्ध करता है। [
मैं जानता हूँ और प्रभु येशु का शिष्य होने के नाते मेरा विश्वास है कि कोई भी वस्तु अपने में अशुद्ध नहीं है; किन्तु यदि कोई यह समझता है कि अमुक वस्तु अशुद्ध है, तो वह उसके लिए अशुद्ध हो जाती है।
क्योंकि परमेश्वर का राज्य खाने-पीने का नहीं, बल्कि वह धार्मिकता, शान्ति और आनन्द का विषय है, जो पवित्र आत्मा से प्राप्त होते हैं।
भोजन के कारण परमेश्वर की कृति का विनाश मत करो। यह सच है कि सब कुछ अपने में शुद्ध है, किन्तु भोजन द्वारा दूसरे के मार्ग में रोड़े अटकाना बुरा है।
जो विवाह का निषेध करते हैं और कुछ भोज्य वस्तुओं से परहेज करने का आदेश देते हैं−यद्यपि परमेश्वर ने उन वस्तुओं की सृष्टि इसलिए की है कि सत्य जानने वाले विश्वासी धन्यवाद देते हुए उन्हें ग्रहण करें।
जो शुद्ध हैं, उनके लिए सब कुछ शुद्ध है। किन्तु जो दूषित और अविश्वासी हैं, उनके लिए कुछ भी शुद्ध नहीं हैं, क्योंकि उनका मन और अन्त:करण, दोनों दूषित हैं।
नाना प्रकार के अनोखे सिद्धान्तों के फेर में नहीं पड़ें। उत्तम यह है कि हमारा मन भोजन से नहीं, बल्कि परमेश्वर की कृपा से बल प्राप्त करे। भोजन-सम्बन्धी निषेध-विधियों का पालन करने वालों को इन से लाभ नहीं हुआ।
जो लोग अभी-अभी भ्रान्ति का जीवन बिताने वालों से अलग हुए हैं, वे उन्हें व्यर्थ शब्दाडम्बर और शरीर की घृणित वासनाओं द्वारा लुभाते हैं।