तो तू स्वर्ग से उनकी प्रार्थना सुनना। अपने सेवकों, अपने निज लोग इस्राएलियों के पाप क्षमा करना। जिस सन्मार्ग पर उन्हें चलना चाहिए अपने उस सन्मार्ग की शिक्षा उनको देना। यह देश तूने अपने निज लोगों को पैतृक-अधिकार के लिए दिया है। अत: प्रभु, तू इस देश को वर्षा प्रदान करना।
प्रभु, प्रात:काल अपनी करुणा के वचन मुझे सुना; मैं तुझपर ही भरोसा करता हूं। जिस मार्ग पर मुझे चलना चाहिए, प्रभु, वह मार्ग मुझे सिखा; क्योंकि मैं तेरा ही ध्यान करता हूं।
अब, इसलिए मैं तुझसे विनती करता हूँ : यदि मैंने तेरी कृपा-दृष्टि प्राप्त की है तो मुझे अपना मार्ग सिखा जिससे मैं तुझे जान सकूँ और तेरी कृपा-दृष्टि प्राप्त करूँ। देख, यह राष्ट्र तेरे ही लोग हैं।’
देश-देश के लोग वहाँ जाएंगे और यह कहेंगे : ‘आओ, हम प्रभु के पर्वत पर चढ़ें; आओ, हम याकूब के परमेश्वर के भवन की ओर चलें, ताकि प्रभु हमें अपना मार्ग सिखाए, और हम उसके सिखाए हुए मार्ग पर चलें।’ सियोन पर्वत से प्रभु की व्यवस्था प्रकट होगी, यरूशलेम नगर से ही प्रभु का शब्द सुनाई देगा।
प्रभु यों कहता है, ‘मार्ग के किनारे खड़े हो, और स्वयं देखो। प्राचीन पथों का पता लगाओ। लोगों से पूछो कि सन्मार्ग कहां है। तब उस पर चलो, तभी तुम्हारी आत्मा को चैन मिलेगा। लेकिन यरूशलेम निवासी कहते हैं, “हम सन्मार्ग पर नहीं चलेंगे।”