राजा सुलेमान ने पीतल का एक मंच बनाया था। वह सवा दो मीटर लम्बा, सवा दो मीटर चौड़ा और एक मीटर पैंतीस सेंटीमीटर ऊंचा था। उसने उसको आंगन में रखा था। वह मंच पर खड़ा हुआ। राजा सुलेमान ने समस्त इस्राएली धर्मसभा की उपस्थिति में घुटने टेके और आकाश की ओर हाथ फैलाकर यह प्रार्थना की।
जब दानिएल को यह मालूम हुआ कि निषेधाज्ञा के पत्र पर सम्राट दारा का हस्ताक्षर हो गया, तब वह अपने घर गए। उनके घर की ऊपरी मंजिल के कमरे की खिड़कियां यरूशलेम नगर की दिशा में खुलती थीं। वह दिन में तीन बार घुटने टेककर परमेश्वर से प्रार्थना करते और उसको धन्यवाद दिया करते थे। आज भी उन्होंने वैसा ही किया।
मैंने सदा आपके सम्मुख उदाहरण रखा कि हमें किस प्रकार परिश्रम करते हुए निर्बलों की सहायता करनी चाहिए और प्रभु येशु के शब्द स्मरण रखना चाहिए, जो उन्होंने स्वयं कहे थे : ‘लेने की अपेक्षा देना धन्य है’।”
जब ये दिन पूरे हुए और हम विदा लेकर जाने वाले थे, तो सब लोग, स्त्रियों तथा बच्चों सहित, नगर के बाहर तक हमें पहुंचाने आये। हमने समुद्र-तट पर घुटने टेक कर प्रार्थना की