फिर गायकों की वे दोनों मण्डलियाँ परमेश्वर के मन्दिर में अपने—अपने स्थानों को चली गयीं और मैं अपने सथान पर खड़ा हो गया तथा आधे हाकिम मन्दिर में अपने—अपने स्थानों पर जा खड़े हुए।
उन्होंने उत्तर-प्रत्युत्तर की पद्धति पर प्रभु को धन्यवाद देते हुए उसकी स्तुति में यह गीत गाया : ‘प्रभु भला है; वह इस्राएल पर सदा करुणा करता है।’ इन शब्दों में उन्होंने प्रभु की स्तुति की। उसी समय प्रभु के भवन की नींव डाली गई। तब उपस्थित लोगों ने उच्च-स्वर में जय-जयकार किया।
वहाँ से जुलूस ‘एफ्रइम-द्वार’, ‘प्राचीन-द्वार’, ‘मत्स्य-द्वार’, हननेल-बुर्ज और हम्मेआ-बुर्ज से निकलते हुए ‘मेष-द्वार’ पर पहुँचा और वहाँ से ‘निरीक्षण-द्वार’ पर जाकर रुक गया।
जब मुझे ये बातें स्मरण आती हैं तब मेरे हृदय में तीव्र भाव उमड़ आते हैं: मैं लोगों के साथ गया था। मैंने उन्हें परमेश्वर के भवन तक पहुंचाया था। जनसमूह जयजयकार और स्तुति के साथ पर्व मना रहा था।