सातवें वर्ष में पुरोहित यहोयादा ने दूत भेजकर कारी जाति के सैनिकों और अंगरक्षकों के शतपतियों को बुलाया। पुरोहित यहोयादा ने उन्हें प्रभु के भवन में आने दिया। उसने उनसे सन्धि की। उसने प्रभु के भवन में उनको शपथ दिलाई। तत्पश्चात् उसने उनको राजपुत्र दिखाया।
शतपतियों ने पुरोहित यहोयादा के आदेश के अनुसार कार्य किया। वे अपने सब सैनिकों को, जो विश्राम-दिवस पर कार्यरत थे और जो विश्राम-दिवस पर छुट्टी पर थे, लेकर पुरोहित यहोयादा के पास आए।