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लूका 2:37 - नवीन हिंदी बाइबल

और अब चौरासी वर्ष की विधवा थी। वह मंदिर को नहीं छोड़ती थी बल्कि दिन-रात उपवास और प्रार्थना के साथ सेवा करती रहती थी।

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पवित्र बाइबल

और फिर चौरासी वर्ष तक वह वैसे ही विधवा रही। उसने मन्दिर कभी नहीं छोड़ा। उपवास और प्रार्थना करते हुए वह रात-दिन उपासना करती रहती थी।

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Hindi Holy Bible

वह चौरासी वर्ष से विधवा थी: और मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात-दिन उपासना किया करती थी।

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पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

और फिर विधवा हो गयी थी। अब वह चौरासी वर्ष की थी। वह मन्‍दिर से बाहर नहीं जाती थी और उपवास तथा प्रार्थना करते हुए दिन-रात परमेश्‍वर की सेवा में लगी रहती थी।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

वह चौरासी वर्ष से विधवा थी : और मन्दिर को नहीं छोड़ती थी, पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात–दिन उपासना किया करती थी।

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सरल हिन्दी बाइबल

इस समय उनकी आयु चौरासी वर्ष थी. उन्होंने मंदिर कभी नहीं छोड़ा और वह दिन-रात उपवास तथा प्रार्थना करते हुए परमेश्वर की उपासना में तल्लीन रहती थी.

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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019

वह चौरासी वर्ष की विधवा थी: और मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात-दिन उपासना किया करती थी।

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लूका 2:37
16 क्रॉस रेफरेंस  

हे मेरे परमेश्‍वर, मैं दिन को पुकारता हूँ परंतु तू उत्तर नहीं देता; और रात को भी पुकारता हूँ, परंतु मुझे चैन नहीं मिलता।


निश्‍चय भलाई और करुणा जीवन भर मेरे साथ-साथ बनी रहेंगी; और मैं यहोवा के घर में सर्वदा वास करूँगा।


मैंने यहोवा से एक वर माँगा है, मैं उसी के यत्‍न में लगा रहूँगा : कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में ही वास करूँ, जिससे यहोवा की मनोहरता को निहारता रहूँ और उसके मंदिर में उसका ध्यान करता रहूँ।


तेरे आँगनों में एक दिन बिताना कहीं और के हज़ार दिनों से उत्तम है। दुष्‍टों के डेरों में वास करने की अपेक्षा अपने परमेश्‍वर के भवन के द्वार पर खड़ा रहना मुझे अधिक प्रिय है।


क्या ही धन्य हैं वे जो तेरे भवन में वास करते हैं! वे निरंतर तेरी स्तुति करते रहते हैं। सेला।


वे यहोवा के भवन में रोपे गए हैं; वे हमारे परमेश्‍वर के आँगनों में फूले-फलेंगे।


उसने पीतल की एक हौदी बनाई, और उसका पाया भी पीतल का बनाया, ये मिलापवाले तंबू के द्वार पर सेवा करनेवाली स्‍त्रियों के पीतल के दर्पणों से बनाए गए।


उन्होंने उससे कहा, “यूहन्‍ना के शिष्य तो प्रायः उपवास रखते और प्रार्थना किया करते हैं, इसी प्रकार फरीसियों के शिष्य भी, परंतु तेरे शिष्य तो खाते-पीते हैं।”


तब उन्होंने उपवास तथा प्रार्थना करके उन पर हाथ रखे और उन्हें विदा किया।


फिर उन्होंने प्रत्येक कलीसिया में उनके लिए प्रवर नियुक्‍त किए, और उपवास के साथ प्रार्थना करके उन्हें प्रभु को सौंप दिया, जिस पर उन्होंने विश्‍वास किया था।


उसी प्रतिज्ञा को हमारे बारहों गोत्र उत्सुकता से रात और दिन सेवा करते हुए प्राप्‍त करने की आशा करते हैं; हे राजा, इसी आशा के विषय में यहूदियों ने मुझ पर आरोप लगाए हैं।


जो वास्तव में विधवा है और अकेली है, वह परमेश्‍वर पर ही आशा रखती है, तथा रात और दिन प्रार्थना और विनती में लगी रहती है;


“जो जय पाए मैं उसे अपने परमेश्‍वर के मंदिर का स्तंभ बनाऊँगा। वह फिर कभी वहाँ से बाहर न निकलेगा, और मैं उस पर अपने परमेश्‍वर का नाम और अपने परमेश्‍वर के नगर अर्थात् उस नए यरूशलेम का नाम जो मेरे परमेश्‍वर के स्वर्ग से उतरेगा, और अपना नया नाम लिखूँगा।


इसी कारण वे परमेश्‍वर के सिंहासन के सामने हैं, और उसके मंदिर में दिन और रात उसकी सेवा करते हैं, और वह जो सिंहासन पर विराजमान है, उन्हें अपनी शरण में ले लेगा।