वे कुछ नहीं जानते, न कुछ समझ रखते हैं; क्योंकि उनकी आँखें ऐसी बन्द की गई हैं कि वे देख नहीं सकते; और उनकी बुद्धि ऐसी कि वे बूझ नहीं सकते।
मत्ती 13:13 - इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 मैं उनसे दृष्टान्तों में इसलिए बातें करता हूँ, कि वे देखते हुए नहीं देखते; और सुनते हुए नहीं सुनते; और नहीं समझते। पवित्र बाइबल इसलिये मैं उनसे दृष्टान्त कथाओं का प्रयोग करते हुए बात करता हूँ। क्योंकि यद्यपि वे देखते हैं, पर वास्तव में उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता, वे यद्यपि सुनते हैं पर वास्तव में न वे सुनते हैं, न समझते हैं। Hindi Holy Bible मैं उन से दृष्टान्तों में इसलिये बातें करता हूं, कि वे देखते हुए नहीं देखते; और सुनते हुए नहीं सुनते; और नहीं समझते। पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) मैं उन्हें दृष्टान्तों में शिक्षा देता हूँ, क्योंकि वे देखते हुए भी नहीं देखते और सुनते हुए भी न तो सुनते और न समझते हैं। पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) मैं उनसे दृष्टान्तों में इसलिये बातें करता हूँ कि वे देखते हुए नहीं देखते और सुनते हुए नहीं सुनते, और नहीं समझते। नवीन हिंदी बाइबल मैं इसलिए उनसे दृष्टांतों में बात करता हूँ, क्योंकि वे देखते हुए भी नहीं देखते और सुनते हुए भी नहीं सुनते, और न ही समझते हैं। सरल हिन्दी बाइबल यही कारण है कि मैं लोगों को दृष्टान्तों में शिक्षा देता हूं: “क्योंकि वे देखते हुए भी कुछ नहीं देखते तथा सुनते हुए भी कुछ नहीं सुनते और न उन्हें इसका अर्थ ही समझ आता है. |
वे कुछ नहीं जानते, न कुछ समझ रखते हैं; क्योंकि उनकी आँखें ऐसी बन्द की गई हैं कि वे देख नहीं सकते; और उनकी बुद्धि ऐसी कि वे बूझ नहीं सकते।
“हे मूर्ख और निर्बुद्धि लोगों, तुम जो आँखें रहते हुए नहीं देखते, जो कान रहते हुए नहीं सुनते, यह सुनो। (प्रेरि. 28:26, मर. 8:18)
“हे मनुष्य के सन्तान, तू बलवा करनेवाले घराने के बीच में रहता है, जिनके देखने के लिये आँखें तो हैं, परन्तु नहीं देखते; और सुनने के लिये कान तो हैं परन्तु नहीं सुनते; क्योंकि वे बलवा करनेवाले घराने के हैं। (मर. 8:18, रोम. 11:8)
तब मैंने कहा, “हाय परमेश्वर यहोवा! लोग तो मेरे विषय में कहा करते हैं कि क्या वह दृष्टान्त ही का कहनेवाला नहीं है?”
जैसा लिखा है, “परमेश्वर ने उन्हें आज के दिन तक मंदता की आत्मा दे रखी है और ऐसी आँखें दी जो न देखें और ऐसे कान जो न सुनें।” (व्यव. 29:4, यशा. 6:9,10, यशा. 29:10, यहे. 12:2)