भूमिका
संत याकूब का पत्र अनेक व्यावहारिक उपदेशों का संकलन है। यह पत्र विश्व के समस्त विश्वासियों के नाम लिखा गया था। इसलिए, नया विधान के क्रम में इसे शेष सात “विश्वव्यापी पत्रों” में प्रथम स्थान पर रखा गया है। लेखक ने व्यावहारिक उपदेशों की शिक्षा समझाने के लिए अत्यन्त प्रभावपूर्ण अलंकारिक भाषा, तथा उदाहरणों का प्रयोग किया है। इन उपदेशों का सम्बन्ध मसीही व्यक्ति के विश्वास और दैनिक आचरण से है। लेखक उसे समझ और मार्गदर्शन प्रदान करता है कि मसीही व्यक्ति को अपना विश्वास जीवन में किस प्रकार जीना चाहिए।
लेखक ने यहूदी-मसीही दृष्टिकोण से दिन-प्रतिदिन के जीवन के अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर लिखा है, जैसे गरीबी और अमीरी, प्रलोभन, उत्तम आचरण, पूर्वाग्रह, विश्वास और आचरण, जीभ पर नियंत्रण, बुद्धि, लड़ाई-झगड़े, अहंकार, विनम्रता, दूसरों की निन्दा करना, धीरता, प्रार्थना की शक्ति।
सम्पूर्ण पत्र में लेखक ने विश्वास और आचरण के मध्य जो घनिष्ठ सम्बन्ध है, उस पर जोर दिया है और कहा है कि जैसे आत्मा के बिना शरीर निर्जीव है वैसे ही कर्म के बिना विश्वास निर्जीव है। मसीही धर्म को अपने दैनिक जीवन में धारण करने का अर्थ है, विश्वास के अनुरूप कर्म करना।
विषय-वस्तु की रूपरेखा
अभिवादन 1:1
विश्वास और बुद्धि 1:2-8
गरीबी और अमीरी 1:9-11
परख और प्रलोभन 1:12-18
कथनी और करनी 1:19-27
भेद-भाव के प्रति चेतावनी 2:1-13
कर्म और विश्वास 2:14-26
वाणी पर नियंत्रण 3:1-18
मसीही-जन का सांसारिक जीवन 4:1−5:6
अन्य उपदेश 5:7-20