पुस्तक-परिचय
जैसा कि शीर्षक से स्पष्ट है, यह ग्रन्थ भजनों का संकलन है। इब्रानी शीर्षक के अनुसार इन्हें “प्रार्थनामय स्तोत्र” कहा गया है और यूनानी शीर्षक के अनुसार “संगीतमय गान” । इन भजनों के रचयिता अनेक हैं, जिन्होंने इस्राएली इतिहास के विभिन्न कालों में इनकी रचना की है। इन प्रार्थनाओं तथा गीतों का संकलन सम्पादकों ने किया है। किन्हीं भजनों के लिए उन्होंने शीर्ष-पंिक्तयाँ जोड़ी हैं, जो परम्परागत भजनकार राजा दाऊद के जीवन से संबंधित हैं। भजनों के वादन तथा गायन के लिए निर्देश भी मिलते हैं और कुछ अन्य अस्पष्ट टिप्पणियाँ भी (जैसे बीच-बीच में एक शब्द “सेलाह” , जो संभवत: विराम का संकेत है) । इस्राएली समाज अपनी आराधना में इन भजनों का प्रयोग करता आया है। इसलिए बहुत-से भजनों का वास्तविक संदर्भ और रचनाकाल यरूशलेम का मंदिर है: चाहे “प्रथम” (सुलेमान द्वारा निर्मित) मंदिर अथवा “द्वितीय” (निष्कासन से वापसी के बाद पुन:निर्मित) मंदिर। इस्राएलियों ने अपने धर्मशास्त्रों में इनको सम्मिलित किया है। उन्होंने मूसा की व्यवस्था तथा नबियों के ग्रंथों के बाद “अन्य लेखों” में इनको मुख्य स्थान दिया।
इन धार्मिक कविताओं-प्रार्थनाओं को अनेक विषय-समूहों में एकत्र किया जा सकता है- जैसे स्तुतिगान, संकट से बचाव के लिए निवेदन, क्षमा-याचना, धन्यवाद के गीत एवं शत्रुओं को दण्ड हेतु की गयी विनतियाँ। कुछ गीत एवं प्रार्थनाएँ अत्यन्त वैयक्तिक, निजी अनुभवों की अभिव्यक्ति हैं, तथा अन्य गीत एवं प्रार्थनाएँ सम्पूर्ण समाज की भावनाओं की। कुछ गीत छोटे आकार के हैं, क्योंकि इन्हें टेक (स्थाई-पद) के रूप में दुहराते थे, तथा अन्य गीतों के पद इब्रानी अक्षरमाला के क्रम में विस्तृत रूप से प्रस्तुत किये गये हैं।
“नया विधान” के रचयिताओं ने प्रभु येशु के श्री-मुख से कुछ भजनों का उल्लेख किया है। अत: मसीही कलीसिया की आराधना में आरंभ से ही भजन संहिता का उपयोग किया जा रहा है। कुछ भजनों में प्रतिशोध की भावना को केवल घोर संकट का तीव्र उद्गार माना गया है, जो व्यक्तिगत अथवा राष्ट्रीय “शत्रु” के प्रति क्षमा-भाव मांगने का अवसर है।
विषय-वस्तु की रूपरेखा
भजन संहिता के 150 भजनों को निम्नलिखित पाँच खण्डों में संकलित किया गया है। (प्रत्येक खण्ड के अन्त में एक स्तुति-वचन जोड़ा गया है):
पहला खण्ड भजन 1 − 41 (41:13)
दूसरा खण्ड भजन 42 − 72 (72:18-20)
तीसरा खण्ड भजन 73 − 89 (89:52)
चौथा खण्ड भजन 90 − 106 (106:48)
पांचवां खण्ड भजन 107 − 150
इन 150 भजनों का पाँच विषय-समूहों में वर्गीकरण किया जा सकता है :
पहला वर्ग : निवेदन
व्यक्तिगत : 3, 5, 6, 7,13, 17, 22, 25, 26, 28, 31, 35, 38, 39, 41, 42-43, 51, 54, 55, 56, 57, 59, 61, 64, 70, 71, 77, 86, 88, 94, 102, 109, 120, 130, 139, 140, 141, 142, 143
सामूहिक : 12, 36, 44, 58, 60, 74, 79, 80, 82, 83, 85, 90, 108, 123, 126, 129, 137
भरोसा : 4, 11, 16, 23, 27, 52, 62, 73, 91, 121, 131
दूसरा वर्ग : स्तुति
परमेश्वर की महिमा : 8, 29, 33, 65, 100, 104, 113, 114, 117, 147, 148, 149, 150
परमेश्वर का राज्य : 47, 93, 95, 96, 97, 98, 99, 145, 146
धन्यवाद : 9-10, 30, 32, 40, 66, 67, 75, 92, 103, 107, 111, 116, 118, 124, 138
तीसरा वर्ग : शिक्षा
धर्माचरण : 1, 14, 19, 34, 37, 49, 53, 112, 119, 127, 128
धर्म-इतिहास : 78, 105, 106, 135, 136
चौथा वर्ग : आराधना
तीर्थ : 15, 24, 50, 63, 68, 81, 115, 122, 133, 134
सियोन पर्वत : 46, 48, 76, 84, 87, 125
पांचवां वर्ग : राज्य
दाऊद वंशज (मसीह) : 2, 18, 20, 21, 45, 72, 89, 101, 110, 132, 144
कुछ भजनों का विशेष अवसर पर प्रयोग होता था। मुख्य तीर्थ-पर्वों के समय “हल्लेल” अर्थात् स्तुति के भजन 113-118 प्रयुक्त होते थे। भजन 136 “महान हल्लेल” का भजन कहलाता था।
मसीही प्रयोग में सात भजनों को विशेष पश्चात्ताप की अभिव्यक्ति मानते हैं : भजन 6, 32, 38, 51, 102, 130 और 140। दैनिक प्रार्थना में भजन 95 प्राय: आरंभिक आह्वान के रूप में प्रयुक्त होता है, जब कि भज 4 एवं 134 रात्रि वंदना के लिए उपयुक्त हैं प्रभात वंदना के आरंभ में भजन 51:15 का उल्लेख किया जाता है : “हे स्वामी, मेरे ओंठों को खोल; तब मेरा मुंह तेरी स्तुति करेगा।” संध्या-वंदना का आरंभ भजन 40:13 पर आधारित है : “प्रभु! मेरे उद्धार के लिए कृपा कर। प्रभु! अविलम्ब मेरी सहायता कर।”