अभिवादन1 मैं, धर्मवृद्ध, यह पत्र परमेश्वर की उस कृपापात्र “महिला” और उसके बच्चों के नाम लिख रहा हूँ, जिनसे मैं सच्चा प्रेम करता हूँ। और मैं ही नहीं, बल्कि वे सभी, जो सत्य को जानते हैं। 2 यह प्रेम उस सत्य पर आधारित है, जो हम में विद्यमान है और अनन्तकाल तक हमारे साथ रहेगा। 3 यदि हम सत्य और प्रेम में बने रहेंगे, तो हमें पिता परमेश्वर और पिता के पुत्र येशु मसीह की ओर से कृपा, दया और शान्ति प्राप्त होगी। प्रेम और सत्य4 मुझे यह देख कर बड़ा आनन्द हुआ कि आप के कुछ बच्चे सत्य के मार्ग पर चल रहे हैं, जैसा कि हमें पिता की ओर से आदेश मिला है। 5 अब, हे महिला! मेरा आप से एक निवेदन है। मैं आप को कोई नया आदेश नहीं, बल्कि वही आदेश लिख रहा हूँ, जो हमें प्रारम्भ से मिला है कि हम एक दूसरे से प्रेम करें। 6 और प्रेम का अर्थ यह है कि हम परमेश्वर की आज्ञाओं के मार्ग पर चलते रहें। जो आदेश आप को प्रारम्भ से प्राप्त है, वह यह है कि आप को प्रेम के मार्ग पर चलना चाहिए। 7 भ्रम में डालनेवाले बहुत-से उपदेशक संसार में फैल गये हैं। वे यह नहीं मानते कि येशु मसीह देहधारण कर आये थे। यह भ्रम में डालने वाले और मसीह-विरोधी का लक्षण है। 8 आप लोग सावधान रहें जिससे आप अपने परिश्रम का फल न खो बैठें, बल्कि अपना पूरा पुरस्कार प्राप्त करें। 9 जो कोई मसीह की शिक्षा की सीमा के अन्दर नहीं रहता, बल्कि उस से बाहर चला जाता है, उसे परमेश्वर प्राप्त नहीं है। जो शिक्षा की सीमा के अन्दर रहता है, उसे पिता और पुत्र, दोनों प्राप्त हैं। 10 यदि कोई आप लोगों के पास आता है और यह शिक्षा साथ नहीं लाता, तो आप उसको अपने घर में न ठहराएं, और न ही उसका स्वागत करें; 11 क्योंकि जो व्यक्ति उसका स्वागत करता है, वह उसके दुष्ट कर्मों में सहभागी होता है। उपसंहार12 मुझे आप लोगों को बहुत कुछ लिखना है, किन्तु मैं यह कागज और स्याही से नहीं करना चाहता। मुझे आशा है कि मैं आपके यहाँ आ कर आमने-सामने बातचीत करूँगा, जिससे हमारा आनन्द परिपूर्ण हो। 13 आपकी निर्वाचित “बहिन” की सन्तान आप लोगों को नमस्कार कहती है। |
Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
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