बुद्धिमानी बनाम मूर्खता1 बुद्धि ने अपना घर बनाया; उसने अपने सात खंभे खड़े किए। 2 उसने अपना पशु काटकर और अपने दाखमधु में मसाला मिलाकर अपना भोज तैयार किया है। 3 तब उसने अपनी सेविकाओं को निमंत्रण देने भेजा; और वह नगर के ऊँचे स्थानों से पुकारती है : 4 “जो कोई भोला है वह घर के भीतर आए।” और उनसे जो नासमझ हैं वह कहती है : 5 “आओ, मेरे भोजन में से खाओ, और मेरे मसाला मिलाए हुए दाखमधु में से पीओ। 6 अपनी मूर्खता छोड़ो और जीवित रहो, तथा समझ के मार्ग में आगे बढ़ो।” 7 जो ठट्ठा करनेवाले को शिक्षा देता है, वह स्वयं अपमानित होता है; और जो दुष्ट व्यक्ति को डाँटता है वह स्वयं को हानि पहुँचाता है। 8 ठट्ठा करनेवाले को न डाँट, नहीं तो वह तुझसे बैर रखेगा; बुद्धिमान को डाँट, वह तो तुझसे प्रेम रखेगा। 9 बुद्धिमान को शिक्षा दे तो वह अधिक बुद्धिमान होगा; धर्मी को सिखा तो वह अपनी विद्या बढ़ाएगा। 10 यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरंभ है, और परमपवित्र को जानना ही समझ है। 11 मेरे द्वारा ही तेरी आयु बढ़ेगी, और तेरे जीवन के वर्ष अधिक होंगे। 12 यदि तू बुद्धिमान हो तो बुद्धि का लाभ तुझे ही मिलेगा; और यदि तू ठट्ठा करता है तो तू ही दुःख उठाएगा। 13 मूर्खता उस स्त्री के समान है जो कोलाहल मचाती है, वह विवेकहीन है और कुछ नहीं जानती। 14 वह अपने घर के द्वार पर बैठी है; वह नगर के ऊँचे स्थानों में अपने आसन पर है, 15 और वह पथिकों से अर्थात् उनसे जो अपने-अपने मार्ग पर सीधे जाते हैं, पुकार पुकारकर कहती है : 16 “जो कोई भोला है वह घर के भीतर आए।” और उससे जो नासमझ है वह कहती है : 17 “चोरी का पानी मीठा होता है, और छिपकर खाई रोटी अच्छी लगती है।” 18 वह यह नहीं जानता कि वहाँ मरे हुओं का वास है, और उसके अतिथि अधोलोक के निचले स्थानों में पड़े हैं। |