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- Sanasan -




मुकाशफ़ा 7:13 - उर्दू हमअस्र तरजुमा

13 फिर बुज़ुर्गों में से एक ने मुझ से पूछा के यह सफ़ैद जामे पहने हुए लोग कौन हैं, और कहां से आये हैं?

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

13 और बुज़ुर्गों में से एक ने मुझ से कहा, ये सफ़ेद जामे पहने हुए कौन हैं, और कहाँ से आए हैं?”

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

किताब-ए मुक़द्दस

13 बुज़ुर्गों में से एक ने मुझसे पूछा, “सफ़ेद लिबास पहने हुए यह लोग कौन हैं और कहाँ से आए हैं?”

Faic an caibideil Dèan lethbhreac




मुकाशफ़ा 7:13
11 Iomraidhean Croise  

फिर, हुज़ूर ईसा ने बैतुलमुक़द्दस में तालीम देते वक़्त, पुकार कर फ़रमाया, “हां, तुम मुझे जानते हो, और ये भी जानते हो के मैं कहां से हूं। मैं अपनी मर्ज़ी से नहीं आया, लेकिन जिस ने मुझे भेजा है वह सच्चा है। तुम उन्हें नहीं जानते हो,


पतरस ने ये देखा तो वह लोगों से यूं मुख़ातिब हुए: “ऐ इस्राईलियो, तुम इस बात पर हैरान क्यूं हो? और हमें ऐसे क्यूं देख रहे हो गोया हम ने अपनी क़ुदरत और पारसाई से इस लंगड़े को चलने फिरने के क़ाबिल बना दिया है?


अलबत्ता सरदीस में तुम्हारे जमाअत में बाज़ लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपने लिबास आलूदा नहीं किये हैं। वो सफ़ैद लिबास पहने हुए मेरे साथ सैर करेंगे क्यूंके वो इस इज़्ज़त के लाइक़ हैं।


तो वो चौबीस बुज़ुर्ग हुक्मरां ख़ुदा के सामने जो तख़्त-नशीन है, मुंह के बल सज्दे में गिर पड़ते हैं जो अबद तक ज़िन्दा रहेगा। वो अपने ताज ये कहते हुए उस तख़्त-ए-इलाही के सामने डाल देते हैं,


उस तख़्त-ए-इलाही के चारों तरफ़ चौबीस बाक़ी तख़्त मौजूद थे जिन पर चौबीस बुज़ुर्ग हुक्मरां सफ़ैद जामे पहने बैठे हुए थे और उन के सरों पर सोने के ताज थे।


फिर मैंने निगाह की तो उस तख़्त-ए-इलाही और उन जानदारों और बुज़ुर्गों के इर्दगिर्द मौजूद लाखों और करोड़ों फ़रिश्तों की आवाज़ सुनी।


तब उन बुज़ुर्गों में से एक ने मुझ से कहा, “मत रो, देख, यहूदाह के क़बीले का शेर बब्बर जो हज़रत दाऊद की असल है, वोही उस किताब और उस की सातों मुहरों को खोलने के लाइक़ है और ग़ालिब आया है।”


इस के बाद जब मैंने निगाह की तो देखता हूं के हर क़ौम, हर क़बीला, हर उम्मत और अहल-ए-ज़बान की एक ऐसी बड़ी भेड़ मौजूद है जिस का शुमार करना मुम्किन नहीं, ये सब सफ़ैद जामे पहने हुए और हाथों में खजूर की डालियां लिये हुए तख़्त-ए-इलाही के आगे और बर्रे के रूबरू खड़े थे।


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