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- Sanasan -




मुकाशफ़ा 5:8 - उर्दू हमअस्र तरजुमा

8 और जब उस ने वो किताब ली तो चारों जानदार और चौबीस बुज़ुर्ग हुक्मरां उस बर्रे के सामने सज्दे में गिर पड़े। उन में से हर एक के पास बरबत और बख़ूर से भरे हुए सोने के प्याले थे। ये मुक़द्दसीन की दुआएं हैं।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

8 जब उसने उस किताब को लिया, तो वो चारों जानदार और चौबीस बुज़ुर्ग उस बर्रे के सामने गिर पड़े; और हर एक के हाथ में बर्बत और 'ऊद से भरे हुए सोने के प्याले थे, ये मुक़द्दसों की दु'आएँ हैं।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

किताब-ए मुक़द्दस

8 और लेते वक़्त चार जानदार और 24 बुज़ुर्ग लेले के सामने मुँह के बल गिर गए। हर एक के पास एक सरोद और बख़ूर से भरे सोने के प्याले थे। इनसे मुराद मुक़द्दसीन की दुआएँ हैं।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac




मुकाशफ़ा 5:8
27 Iomraidhean Croise  

अगले दिन हज़रत यहया ने हुज़ूर ईसा को अपनी तरफ़ आते देखकर कहा, “देखो, ये ख़ुदा का बर्रा है, जो दुनिया का गुनाह उठा ले जाता है!


ताके सब लोग बेटे को भी वोही इज़्ज़त दें जो वह बाप को देते हैं। जो बेटे की इज़्ज़त नहीं करता वह बाप की भी जिस ने बेटे को भेजा है, इज़्ज़त नहीं करता।


और फिर जब ख़ुदा अपने अब्दी पहलौठे बेटे को दुनिया में भेजता है तो फ़रमाता है, “ख़ुदा के सब फ़रिश्ते उसे सज्दा करें।”


और तमाम अहल-ए-ज़मीन के सब बाशिन्दे उस हैवान की परस्तिश करेंगे, वो सब जिन के नाम उस बनाये आलम से ज़ब्ह किये हुए बर्रे की किताब-ए-हयात में दर्ज नहीं किये थे।


फिर मैंने शीशे का सा एक समुन्दर देखा जिस में आग मिली हुई थी। मैंने उस शीशे के समुन्दर के किनारे पर उन लोगों को खड़े हुए देखा, जो हैवान और उस की बुत और उस के नाम के अदद पर ग़ालिब आये थे। उन के हाथों में ख़ुदा की दी हुई बरबतें थीं।


फिर उन चार जानदारों में से एक ने उन सात फ़रिश्तों को सोने के सात प्याले दिये जो अबद तक ज़िन्दा रहने वाले ख़ुदा के क़हर से भरे हुए थे।


तब चौबीसों बुज़ुर्गों और चारों जानदारों ने मुंह के बल गिरकर ख़ुदा को जो तख़्त-नशीन था, सज्दा कर के कहा “आमीन, हल्लेलुयाह!”


तो वो चौबीस बुज़ुर्ग हुक्मरां ख़ुदा के सामने जो तख़्त-नशीन है, मुंह के बल सज्दे में गिर पड़ते हैं जो अबद तक ज़िन्दा रहेगा। वो अपने ताज ये कहते हुए उस तख़्त-ए-इलाही के सामने डाल देते हैं,


उस तख़्त-ए-इलाही के चारों तरफ़ चौबीस बाक़ी तख़्त मौजूद थे जिन पर चौबीस बुज़ुर्ग हुक्मरां सफ़ैद जामे पहने बैठे हुए थे और उन के सरों पर सोने के ताज थे।


और उस तख़्त के सामने बिल्लौर की मानिन्द शफ़्फ़ाफ़ शीशे का समुन्दर था। तख़्त-ए-इलाही के बीच में और गिर्दागिर्द चार जानदार मख़्लूक़ थीं जिन के आगे पीछे आंखें ही आंखें थीं।


इन चारों जानदारों के छः-छः पर थे और उन के सारे बदन में और पर के अन्दर और बाहर आंखें ही आंखें थीं। वो दिन रात लगातार बग़ैर आराम फ़रमाये ये कहते रहते हैं: “ ‘क़ुददूस, क़ुददूस, क़ुददूस ऐ क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदावन्द ख़ुदा,’ जो था, जो है और जो आने वाला है।”


फिर मैंने निगाह की तो उस तख़्त-ए-इलाही और उन जानदारों और बुज़ुर्गों के इर्दगिर्द मौजूद लाखों और करोड़ों फ़रिश्तों की आवाज़ सुनी।


और उन्होंने बुलन्द आवाज़ से ये नग़मा गाया: “ज़ब्ह किया हुआ बर्रा ही, क़ुदरत, दौलत, हिक्मत, ताक़त इज़्ज़त, तम्जीद और हम्द के लाइक़ है!”


और फिर चारों जानदारों ने, “आमीन” कहा और बुज़ुर्गों ने गिरकर सज्दा किया।


तब मैंने उस तख़्त-ए-इलाही और उन चारों जानदारों और उन बुज़ुर्गों के दरमियान गोया एक ज़ब्ह किया हुआ बर्रा खड़ा देखा। उस के सात सींग और सात आंखें थीं; ये ख़ुदा की सात रूहें यानी पाक रूह है जो तमाम रोय ज़मीन पर भेजी गई हैं।


फिर मैंने देखा के बर्रे ने उन सात मुहरों में से एक मुहर खोली और उन चारों जानदारों में से एक ने गरजती हुई आवाज़ में यह कहते सुना, “आ!”


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