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- Sanasan -




मुकाशफ़ा 5:5 - उर्दू हमअस्र तरजुमा

5 तब उन बुज़ुर्गों में से एक ने मुझ से कहा, “मत रो, देख, यहूदाह के क़बीले का शेर बब्बर जो हज़रत दाऊद की असल है, वोही उस किताब और उस की सातों मुहरों को खोलने के लाइक़ है और ग़ालिब आया है।”

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

5 तब उन बुज़ुर्गों में से एक ने कहा मत रो, यहूदा के क़बीले का वो बबर जो दाऊद की नस्ल है उस किताब और उसकी सातों मुहरों को खोलने के लिए ग़ालिब आया।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

किताब-ए मुक़द्दस

5 लेकिन बुज़ुर्गों में से एक ने मुझसे कहा, “मत रो। देख, यहूदाह क़बीले के शेरबबर और दाऊद की जड़ ने फ़तह पाई है, और वही तूमार की सात मुहरों को खोल सकता है।”

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मुकाशफ़ा 5:5
25 Iomraidhean Croise  

हुज़ूर ईसा ने मुड़ कर उन से कहा, “ऐ यरूशलेम की बेटीयों! मेरे लिये मत रोओ; बल्के अपने लिये और अपने बच्चों के लिये रोओ।


जब ख़ुदावन्द ने उस बेवा को देखा तो उन्हें उस पर तरस आया। हुज़ूर ने उस से कहा, “मत रो।”


सब लोग लड़की के लिये रो पीट रहे थे। लेकिन हुज़ूर ईसा ने उन से कहा, “रोना-पीटना बन्द करो, लड़की मरी नहीं बल्के सो रही है।”


उन्होंने मरियम से पूछा, “ऐ औरत, तुम क्यूं रो रही हो?” मरियम कहा, “मेरे ख़ुदावन्द को उठाकर ले गये हैं और पता नहीं उन्हें कहां रख दिया है।”


जो अपने बेटे अलमसीह की निस्बत से था, जो जिस्मानी एतबार से तो दाऊद की नस्ल से थे,


और यसायाह नबी भी फ़रमाते हैं, “यस्सी की जड़ फूट निकलेगी, यानी एक शख़्स ग़ैरयहूदियों पर हुकूमत करने को उठेगा; तमाम ग़ैरयहूदियों की उम्मीद उसी पर क़ाइम रहेगी।”


चुनांचे यह ज़ाहिर है के हमारे ख़ुदावन्द यहूदाह की नस्ल में पैदा हुए थे और हज़रत मूसा ने इस फ़िर्क़े की कहानत के हक़ में कुछ ज़िक्र नहीं किया।


हुज़ूर ईसा अलमसीह का मुकाश्फ़ा जो उन्हें ख़ुदा ने अता फ़रमाया ताके वो अपने बन्दों को वो बातें दिखाये जिन का जल्द होना ज़रूरी है। और हुज़ूर ने अपना फ़रिश्ता भेज कर ये बातें अपने ख़ादिम यूहन्ना पर ज़ाहिर किया।


“मुझ हुज़ूर ईसा, ने अपना फ़रिश्ता तुम्हारे पास इसलिये भेजा के वो तमाम जमाअतों में इन बातों की तुम्हारे आगे गवाही दे के मैं हज़रत दाऊद की असल और नस्ल और का नूरानी सुबह का नूरानी सितारा हूं।”


जो ग़ालिब आये, मैं उसे अपने साथ अपने तख़्त पर बैठने का हक़ दूंगा, जिस तरह मैं ग़ालिब आकर अपने बाप के साथ उस के तख़्त पर बैठ गया।


तो वो चौबीस बुज़ुर्ग हुक्मरां ख़ुदा के सामने जो तख़्त-नशीन है, मुंह के बल सज्दे में गिर पड़ते हैं जो अबद तक ज़िन्दा रहेगा। वो अपने ताज ये कहते हुए उस तख़्त-ए-इलाही के सामने डाल देते हैं,


उस तख़्त-ए-इलाही के चारों तरफ़ चौबीस बाक़ी तख़्त मौजूद थे जिन पर चौबीस बुज़ुर्ग हुक्मरां सफ़ैद जामे पहने बैठे हुए थे और उन के सरों पर सोने के ताज थे।


मैं ज़ार-ज़ार रोने लगा क्यूंके कोई भी इस लाइक़ न निकला, जो उस किताब को खोल सके या उस पर नज़र डाल सके।


फिर मैंने देखा के बर्रे ने उन सात मुहरों में से एक मुहर खोली और उन चारों जानदारों में से एक ने गरजती हुई आवाज़ में यह कहते सुना, “आ!”


फिर बुज़ुर्गों में से एक ने मुझ से पूछा के यह सफ़ैद जामे पहने हुए लोग कौन हैं, और कहां से आये हैं?


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