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- Sanasan -




मुकाशफ़ा 4:4 - उर्दू हमअस्र तरजुमा

4 उस तख़्त-ए-इलाही के चारों तरफ़ चौबीस बाक़ी तख़्त मौजूद थे जिन पर चौबीस बुज़ुर्ग हुक्मरां सफ़ैद जामे पहने बैठे हुए थे और उन के सरों पर सोने के ताज थे।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

4 उस तख़्त के पास चौबीस बुज़ुर्ग सफ़ेद पोशाक पहने हुए बैठे हैं, और उनके सिरों पर सोने के ताज हैं।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

किताब-ए मुक़द्दस

4 यह तख़्त 24 तख़्तों से घिरा हुआ था जिन पर 24 बुज़ुर्ग बैठे थे। बुज़ुर्गों के लिबास सफ़ेद थे और हर एक के सर पर सोने का ताज था।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac




मुकाशफ़ा 4:4
24 Iomraidhean Croise  

हुज़ूर ईसा ने उन्हें जवाब दिया, “मैं तुम से सच कहता हूं के नई तख़्लीक़ में जब इब्न-ए-आदम अपने जलाली तख़्त पर बैठेगा तो तुम भी जो मेरे पीछे चले आये हो बारह तख़्तों पर बैठ कर, इस्राईल के बारह क़बीलों का इन्साफ़ करोगे।


ताके तुम मेरी सल्तनत में मेरे दस्तरख़्वान से खाओ और पिओ और तुम शाही तख़्तों पर बैठ कर इस्राईल के बारह क़बीलों का इन्साफ़ करोगे।


मुस्तक़बिल में मेरे लिये रास्तबाज़ी का वो ताज रख्खा हुआ है, जो आदिल और मुन्सिफ़ ख़ुदावन्द मुझे अपने दुबारा आमद के दिन अता फ़रमायेगा। और न सिर्फ़ मुझे बल्के उन सब को भी जो ख़ुदावन्द की आमद के आरज़ूमन्द हैं।


और उन चौबीस बुज़ुर्गों ने जो ख़ुदा के हुज़ूर अपने-अपने तख़्त पर बैठे हुए थे, मुंह के बल गिरकर ख़ुदा को सज्दा किया और उस की इबादत ये कह कर की,


वो तख़्त-ए-इलाही के सामने और चारों जानदारों और बुज़ुर्गों के आगे एक नया नग़मा गा रहे थे और उन एक लाख चवालीस हज़ार अफ़राद के सिवा जो दुनिया में से ख़रीद लिये गये थे कोई और उस नग़मे को न सीख सका।


आसमानी फ़ौजें सफ़ैद घोड़ों पर सवार, और सफ़ैद और साफ़ महीन कतानी लिबास पहने हुए उस के पीछे-पीछे चल रहीं थीं।


तब चौबीसों बुज़ुर्गों और चारों जानदारों ने मुंह के बल गिरकर ख़ुदा को जो तख़्त-नशीन था, सज्दा कर के कहा “आमीन, हल्लेलुयाह!”


जो दुख तुझे सहने हैं उन से ख़ौफ़ज़दा न हो। मैं तुम्हें आगाह करता हूं के शैतान तुम में से बाज़ को क़ैद में डालने वाला है ताके तुम्हारी आज़माइश हो और तुम दस दिन तक मुसीबत उठाओगे। जान देने तक वफ़ादार रह तो मैं तुझे ज़िन्दगी का ताज दूंगा।


फिर मैंने तख़्त देखे जिन पर वो लोग बैठे हुए थे जिन्हें इन्साफ़ करने का इख़्तियार दिया गया था। और मैंने उन लोगों की रूहें देखें जिन के सर हुज़ूर ईसा की गवाही देने और ख़ुदा के कलाम की वजह से काट दिये गये थे। उन लोगों ने न तो उस हैवान को न उस की बुत को सज्दा किया था, और न अपनी पेशानी या हाथों पर उस का निशान लगवाया था। और वो ज़िन्दा होकर एक हज़ार बरस तक अलमसीह के साथ बादशाही करते रहे।


इसलिये मैं तुम्हें सलाह देता हूं के मुझ से आग में तपाया हुआ सोना ख़रीद ले ताके दौलतमन्द हो जाये और पहनने के लिये सफ़ैद पोशाक ख़रीद कर पहन लो ताके तुम्हारे नंगे पन की शर्मिन्दगी ज़ाहिर न होने पाए और अपनी आंखों में डालने के लिये सुरमा ले लो ताके तुम बेनाई पाओ।


तो वो चौबीस बुज़ुर्ग हुक्मरां ख़ुदा के सामने जो तख़्त-नशीन है, मुंह के बल सज्दे में गिर पड़ते हैं जो अबद तक ज़िन्दा रहेगा। वो अपने ताज ये कहते हुए उस तख़्त-ए-इलाही के सामने डाल देते हैं,


और उस तख़्त के सामने बिल्लौर की मानिन्द शफ़्फ़ाफ़ शीशे का समुन्दर था। तख़्त-ए-इलाही के बीच में और गिर्दागिर्द चार जानदार मख़्लूक़ थीं जिन के आगे पीछे आंखें ही आंखें थीं।


फिर मैंने निगाह की तो उस तख़्त-ए-इलाही और उन जानदारों और बुज़ुर्गों के इर्दगिर्द मौजूद लाखों और करोड़ों फ़रिश्तों की आवाज़ सुनी।


और फिर चारों जानदारों ने, “आमीन” कहा और बुज़ुर्गों ने गिरकर सज्दा किया।


तब मैंने उस तख़्त-ए-इलाही और उन चारों जानदारों और उन बुज़ुर्गों के दरमियान गोया एक ज़ब्ह किया हुआ बर्रा खड़ा देखा। उस के सात सींग और सात आंखें थीं; ये ख़ुदा की सात रूहें यानी पाक रूह है जो तमाम रोय ज़मीन पर भेजी गई हैं।


और जब उस ने वो किताब ली तो चारों जानदार और चौबीस बुज़ुर्ग हुक्मरां उस बर्रे के सामने सज्दे में गिर पड़े। उन में से हर एक के पास बरबत और बख़ूर से भरे हुए सोने के प्याले थे। ये मुक़द्दसीन की दुआएं हैं।


तब उन में से हर एक को सफ़ैद जामा दिया गया और उन से कहा गया के थोड़ी देर और इन्तिज़ार करो, जब तक के तुम्हारे हम ख़िदमत भाईयों और बहनों का भी शुमार पूरा न हो जाये, जो तुम्हारी तरह क़त्ल किये जाने वाले हैं।


और उन तमाम फ़रिश्तों ने जो उस तख़्त-ए-इलाही के और उन बुज़ुर्गों और चारों जानदारों के गिर्दागिर्द खड़े थे, तख़्त के सामने मुंह के बल सज्दे में गिर पड़े और ख़ुदा को सज्दा कर के,


इस के बाद जब मैंने निगाह की तो देखता हूं के हर क़ौम, हर क़बीला, हर उम्मत और अहल-ए-ज़बान की एक ऐसी बड़ी भेड़ मौजूद है जिस का शुमार करना मुम्किन नहीं, ये सब सफ़ैद जामे पहने हुए और हाथों में खजूर की डालियां लिये हुए तख़्त-ए-इलाही के आगे और बर्रे के रूबरू खड़े थे।


वो टिड्डियां उन घोड़ों की तरह दिखाई दे रही थीं जो लड़ाई के लिये तय्यार किये गये हों। उन टिड्डियों के सरों पर गोया सोने के ताज थे और उन के चेहरे इन्सानी चेहरों के मुशाबेह थे।


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