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- Sanasan -




मुकाशफ़ा 18:2 - उर्दू हमअस्र तरजुमा

2 उस ने बुलन्द आवाज़ से एलान किया, “ ‘गिर पड़ा, वह अज़ीम शहर बाबुल गिर पड़ा!’ जो बदरूहों का मस्कन और हर नापाक रूह का अड्डा बन गया था, और हर नापाक परिन्दे का बसेरा और हर नापाक और मकरूह हैवान का अड्डा हो गया था।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

2 उसने बड़ी आवाज़ से चिल्लाकर कहा, “गिर पड़ा, बड़ा शहर बाबुल गिर पड़ा! और शयातीन का मस्कन और हर नापाक और मकरूह परिन्दे का अंडा हो गया।

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किताब-ए मुक़द्दस

2 उसने ऊँची आवाज़ से पुकारकर कहा, “वह गिर गई है! हाँ, अज़ीम कसबी बाबल गिर गई है! अब वह शयातीन का घर और हर बदरूह का बसेरा बन गई है, हर नापाक और घिनौने परिंदे का बसेरा।

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मुकाशफ़ा 18:2
26 Iomraidhean Croise  

और उस के पांव भट्टी में तपाए हुए ख़ालिस पीतल की मानिन्द थे और उस की आवाज़ ज़ोर से बहते हुए आबशार की मानिन्द थी।


वो शेर बब्बर की तरह ज़ोर से दहाड़ा और उस के दहाड़ने से गरज की सी सात आवाज़ें पैदा हुईं।


और उन की लाशें उस शहर अज़ीम के बाज़ार में पड़ी रहेंगी, उस शहर को बतौर इस्तिआरा सदूम और मिस्र का नाम दिया गया है जहां उन का ख़ुदावन्द भी उसी शहर में मस्लूब हुआ था।


फिर बैतुलमुक़द्दस में से एक और फ़रिश्ता बाहर निकला और उस ने बादल पर बैठे हुए शख़्स को बुलन्द आवाज़ से पुकार कर कहा, “अपनी दरांती चला और फ़सल काट, क्यूंके फ़सल काटने का वक़्त आ गया है, इसलिये के ज़मीन की फ़सल पक गई है।”


उस के बाद एक दूसरा फ़रिश्ता आया और वह बुलन्द आवाज़ से ऐलान किया, “ ‘गिर पड़ा वो अज़ीम शहर बाबुल गिर पड़ा,’ जिस ने अपनी ज़िनाकारी के क़हर की मय सब क़ौमों को पिलाई है।”


फिर मैंने तीन नापाक रूहों को मेंढ़कों की सूरत में अज़दहा के मुंह से और हैवान के मुंह से और उस झूटे नबी के मुंह से निकलते देखी।


और वो ज़लज़ला इतना सख़्त था के अज़ीम शहर टूट कर तीन टुकड़े हो गया और तमाम क़ौमों के सब शहर भी तबाह हो गये। ख़ुदा ने बड़े शहर बाबुल को याद किया ताके वो उसे अपने शदीद क़हर की मय से भरा हुआ प्याला पिलाये।


और जिस औरत को तुम ने देखा, ये वो शहर अज़ीम है जो ज़मीन के बादशाहों पर हुकूमत करता है।”


उस की पेशानी पर ये पुरसरार नाम दर्ज था राज़ शहर अज़ीम बाबुल कस्बियों की वालिदा और ज़मीन की मकरूहात चीज़ों की मां।


और उस के अज़ाब से दहशत-ज़दा होकर दूर जा खड़े होंगे और कहेंगे, “ ‘अफ़सोस, अफ़सोस, ऐ अज़ीम शहर, ऐ बाबुल, ऐ शहर-ए-क़ुव्वत! घड़ी-भर में ही तुझे सज़ा मिल गई!’


फिर एक और फ़रिश्ता ने बड़ी चक्की के पाट की मानिन्द एक पत्थर उठाया और ये कह कर उसे समुन्दर में फेंक दिया, “बाबुल का अज़ीम शहर भी इसी तरह ज़ोर से गिराया जायेगा, और फिर उस का कभी पता न चलेगा।”


फिर मैंने एक क़वी फ़रिश्ते को देखा जो बुलन्द आवाज़ से ये एलान कर रहा था, “कौन इस किताब को खोलने और इस की मुहरें तोड़ने के लाइक़ है?”


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