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- Sanasan -




मुकाशफ़ा 10:1 - उर्दू हमअस्र तरजुमा

1 उस के बाद मैंने एक ज़ोरआवर फ़रिश्ते को आसमान से उतरते देखा। वो बादल ओढ़े हुए था और उस के सर के ऊपर क़ौसे-क़ुज़ह थी। उस का चेहरा आफ़ताब की मानिन्द था और पांव आग के सुतूनों की तरह थे।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

1 फिर मैंने एक और ताक़तवर फ़रिश्ते को बादल ओढ़े हुए आसमान से उतरते देखा। उसके सिर पर धनुक थी, और उसका चेहरा आफ़ताब की तरह था, और उसका पाँव आग के सुतूनों की तरह।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

किताब-ए मुक़द्दस

1 फिर मैंने एक और ताक़तवर फ़रिश्ता देखा। वह बादल ओढ़े हुए आसमान से उतर रहा था और उसके सर के ऊपर क़ौसे-क़ुज़ह थी। उसका चेहरा सूरज जैसा था और उसके पाँव आग के सतून जैसे।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac




मुकाशफ़ा 10:1
28 Iomraidhean Croise  

वहां उन के सामने हुज़ूर की सूरत बदल गई। और हुज़ूर का चेहरा सूरज की मानिन्द चमकने लगा और हुज़ूर के कपड़े नूर की मानिन्द सफ़ैद हो गये।


तब लोग इब्न-ए-आदम को अज़ीम क़ुदरत और जलाल के साथ बादलों में आता देखेंगे।


और ऐ बादशाह! जब मैं राह में था तो दोपहर के वक़्त मैंने आसमान से रोशनी आती देखी जो सूरज की रोशनी से भी तेज़-तर थी और वह आकर हमारे गिर्द चमकने लगी।


“देखो, वह बादलों के साथ आ रहे हैं,” “और हर आंख उन्हें देखेगी, और जिन्होंने हुज़ूर ईसा को छेदा था वह भी देखेंगे”; और रोये ज़मीन की सारी क़ौमें “उन के सबब से मातम करेंगी।” बेशक ऐसा ही होगा। आमीन।


इस के बाद मैंने एक और फ़रिश्ते को आसमान से उतरते देखा। वह बड़ा साहिबे इख़्तियार था। उस के जलाल से सारी ज़मीन रोशन हो गई।


फिर एक और फ़रिश्ता ने बड़ी चक्की के पाट की मानिन्द एक पत्थर उठाया और ये कह कर उसे समुन्दर में फेंक दिया, “बाबुल का अज़ीम शहर भी इसी तरह ज़ोर से गिराया जायेगा, और फिर उस का कभी पता न चलेगा।”


फिर मैंने एक फ़रिश्ते को आसमान से उतरते देखा। उस के पास अथाह गढ़े की कुन्जी थी और वो हाथ में एक बड़ी ज़न्जीर लिये हुए था।


वह तख़्त-नशीन देखने में संग-ए-यशब और अक़ीक़ की तरह नज़र आ रहा था और उस तख़्त-ए-इलाही के इर्दगिर्द ज़मर्रुद की मानिन्द एक चमकदार क़ौसे-क़ुज़ह थी।


फिर मैंने एक क़वी फ़रिश्ते को देखा जो बुलन्द आवाज़ से ये एलान कर रहा था, “कौन इस किताब को खोलने और इस की मुहरें तोड़ने के लाइक़ है?”


जब मैंने फिर निगाह की तो एक बड़ा सा उक़ाब आसमान के फ़िज़ा में उड़ता देखा और उसे बुलन्द आवाज़ से ये कहते सुना, “उन तीन फ़रिश्तों के नरसिंगे की आवाज़ के बाइस जिन का फूंकना अभी बाक़ी है, अहल-ए-ज़मीन पर अफ़सोस, अफ़सोस, अफ़सोस!”


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