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- Sanasan -




इफ़िसियों 4:12 - उर्दू हमअस्र तरजुमा

12 ताके ख़ुदा के मुक़द्दस लोग ख़िदमत करने के लिये मुकम्मल तौर पर तरबियत पायें, और अलमसीह के बदन की तरक़्क़ी का बाइस हों

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

12 ताकि मुक़द्दस लोग कामिल बनें और ख़िदमत गुज़ारी का काम किया जाए, और मसीह का बदन बढ़ जाएँ

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

किताब-ए मुक़द्दस

12 इनका मक़सद यह है कि मुक़द्दसीन को ख़िदमत करने के लिए तैयार किया जाए और यों मसीह के बदन की तामीरो-तरक़्क़ी हो जाए।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac




इफ़िसियों 4:12
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लेकिन शमऊन, के मैंने तुम्हारे लिये शिद्दत से दुआ की है के तेरा ईमान जाता न रहे और जब तू तौबा कर चुके तो अपने भाईयों के ईमान को मज़बूत करना।”


ख़ुदावन्द ईसा हमारे हम ख़िदमत थे और हम लोगों में गिन जाता था।”


के वह इस ख़िदमत और रिसालत पर मामूर हो, जिसे यहूदाह छोड़कर इस अन्जाम तक पहुंचा जिस का वह मुस्तहिक़ था।”


जब वह वहां पहुंचे तो देखा के ख़ुदा के फ़ज़ल ने क्या किया है और उन की हौसला अफ़्ज़ाई कर के उन्हें नसीहत दी के पूरे दिल से ख़ुदावन्द के वफ़ादार रहें।


लेकिन, मेरी जान मेरे लिये कोई क़दर-ओ-क़ीमत नहीं रखती; में तो बस ये चाहता हूं के मेरी दौड़ पूरी हो जाये और मैं ख़ुदा के फ़ज़ल की ख़ुशख़बरी सुनाने का काम जो ख़ुदावन्द ईसा ने मुझे दिया है को पूरी सदाक़त से कर लूं।


पस अपना और सारे गल्ले का ख़्याल रखो जिस के तुम पाक रूह की जानिब से निगहबां मुक़र्रर किये गये हो ताके ख़ुदा की जमाअत की निगहबानी करो जिसे ख़ुदा ने ख़ास अपने ही ख़ून से ख़रीदा है।


तब तमाम यहूदिया, गलील और सामरिया में जमाअत को अमन नसीब हुआ, वह मज़बूत होती गई ख़ुदावन्द के ख़ौफ़-ओ-अक़ीदत में ज़िन्दगी गुज़ारने और पाक रूह की हौसला अफ़्ज़ाई से जमाअत की तादाद में इज़ाफ़ा होता चला गया।


उसी तरह हम भी जो बहुत से हैं अलमसीह में शामिल होकर एक बदन हैं और आपस में एक दूसरे के आज़ा।


अगर ख़िदमत मिली हो तो ख़िदमत में लगा रहे। अगर तालीम देने की नेमत मिली है तो तालीम देता रहे।


आओ हम इन बातों की जुस्तुजू में रहें जो अमन और बाहमी तरक़्क़ी का बाइस होती हैं।


ऐ मेरे भाईयो और बहनो! मुझे तुम्हारे बारे में यक़ीन है के तुम ख़ुद भी नेकी से मामूर हो और इल्म भी बहुत ज़्यादा रखते हो और एक दूसरे को नसीहत करने के क़ाबिल भी हो।


हम में से हर शख़्स अपने पड़ोसी के फ़ायदा और ईमान में तरक़्क़ी का लिहाज़ रखते हुए उसे ख़ुश करे।


मैं जानता हूं के जब तुम्हारे पास आऊंगा तो अलमसीह की सारी बरकतें ले कर आऊंगा।


पस तुम मिल कर अलमसीह का बदन हो और फ़र्दन-फ़र्दन उस के आज़ा हो।


लेकिन पाक रूह का ज़हूर हर शख़्स को फ़ायदा पहचाने के लिये होता है।


इसी तरह जब तुम रूहानी नेमतों के पाने की आरज़ू करो तो कोशिश करो के तुम्हारी रूहानी नेमतों के इज़ाफ़ा से जमाअत की तरक़्क़ी हो।


क्यूंके अगर मैं किसी अजनबी ज़बान में दुआ करूं तो मेरी रूह तो दुआ करती है मगर मेरी अक़्ल बेकार रहती है।


ऐ भाईयो और बहनो! तुम्हें क्या करना चाहिये? जब तुम इबादत की ग़रज़ से जमा होते हो तो किसी का दिल चाहता है के गीत गाए, कोई तालीम देना चाहता है, कोई मुकाशफ़े की बात कहना चाहता है, कोई किसी बेगाना ज़बान में कलाम करना चाहता है, कोई उस का तरजुमा करना चाहता है, लाज़िम है के जो कुछ किया जाये जमाअत की तरक़्क़ी के लिये हो।


क्या तुम अभी तक यही समझते हो के हम अपनी सफ़ाई पेश कर रहे हैं? हम तो ख़ुदा को हाज़िर नाज़िर जान कर अलमसीह में बोलते हैं; अज़ीज़ों! और यह सब कुछ, तुम्हारी तरक़्क़ी के लिये है।


अब आख़िर में यह लिखता हूं के भाईयो और बहनों, ख़ुश रहो, कामिल बनो, तसल्ली पाओ, एक दिल रहो, मेल-जोल रखो और ख़ुदा जो महब्बत और मेल-जोल का सरचश्मा है तुम्हारे साथ होगा।


अगर तुम सच-मुच ज़ोरआवर हो तो हम अपने कमज़ोर होने पर भी ख़ुश हैं; और यह दुआ भी करते हैं के तुम ख़ूब कामिल होते चले जाओ।


तो क्या पाक रूह का अह्द उस से कहीं बढ़कर जलाल वाला न होगा?


पस जब हम ने ख़ुदा के मेहरबानी की बदौलत यह ख़िदमत पाई है, तो हम हिम्मत नहीं हारते।


यह सब ख़ुदा की तरफ़ से है जिस ने अलमसीह के ज़रीये हमारे साथ सुलह कर ली और सुलह कराने की ख़िदमत हमारे सुपुर्द कर दी:


हम नहीं चाहते के हमारी इस ख़िदमत पर हर्फ़ आये इसलिये हम कोशिश करते हैं के किसी के लिये रुकावट पैदा न करें।


अज़ीज़ों! जब के हम से ऐसे वादे किये गये हैं तो आओ हम अपने आप को सारी जिस्मानी और रूहानी आलूदगी से पाक करें और ख़ुदा के ख़ौफ़ के साथ पाकीज़गी को कमाल तक पहुंचायें।


जमाअत हुज़ूर ईसा का बदन है, और अलमसीह से मामूर है जो सारी चीज़ों को पूरी तरह मामूर करने वाले भी हैं।


अलमसीह की वजह से बदन के तमाम आज़ा, बाहम पेवस्ता हैं और बदन अपने हर जोड़ की मदद से क़ाइम रहता है, चुनांचे जब हर उज़ू अपना-अपना काम सही तौर पर करता है तो सारा बदन तरक़्क़ी करता, और महब्बत में बढ़ता जाता है।


तुम्हारे मुंह से कोई बुरी बात न निकले, बल्के अच्छी बात ही निकले जो ज़रूरत के मुवाफ़िक़ तरक़्क़ी का बाइस हो, ताके सुनने वालों पर फ़ज़ल हो।


बदन एक ही है और पाक रूह भी एक ही है, जब तुम ख़ुदा की तरफ़ से बुलाए गये तो एक ही उम्मीद रखने के लिये बुलाए गये थे;


अब तुम्हारी ख़ातिर दुख उठाना भी मेरे लिये ख़ुशी का बाइस है, क्यूंके मैं अपने जिस्म में अलमसीह की मुसीबतों की कमी को उस के बदन, यानी जमाअत की ख़ातिर पूरा कर रहा हूं।


हम उसी अलमसीह की मुनादी करते, और कमाल दानाई से हर एक को नसीहत करते और तालीम देते हैं, ताके हर शख़्स को अलमसीह में कामिल कर के उसे ख़ुदा के हुज़ूर पेश कर सकें।


अरख़िप्पुस से कहना: “जो ख़िदमत ख़ुदावन्द ने उस के सुपुर्द हुई है उसे होशयारी से अन्जाम दे।”


मैं अपने ख़ुदावन्द अलमसीह ईसा का शुक्र अदा करता हूं जिस ने मुझे क़ुव्वत अता की और वफ़ादार समझ कर अपनी ख़िदमत के लिये मुक़र्रर किया।


सिर्फ़ लूक़ा मेरे पास है। तू मरक़ुस को साथ ले कर चला आ क्यूंके वह इस ख़िदमत में मेरे बड़े काम का है।


मगर तू हर हालत में होशयार रह, दुख उठा, मुबश्-शिर का काम अन्जाम दे और अपनी ख़िदमत को पूरा कर।


अपने रहनुमाओं के फ़रमांबरदार और उन के ताबे रहो क्यूंके वो तुम्हारी रूहों के निगहबान हैं जिन्हें इस ख़िदमत का हिसाब ख़ुदा को देना होगा। उन की बात मानो ताके वो तकलीफ़ के साथ नहीं बल्के ख़ुशी से अपनी ख़िदमत सरअन्जाम दें। क्यूंके इस सूरत में तुम्हें कोई फ़ायदा न होगा।


चुनांचे आओ! अलमसीह की तालीम की इब्तिदाई बुनियादी बातें छोड़कर कामलियत की तरफ़ क़दम बढ़ायें और ऐसी बातें दुहराने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिये जिन से ईमान की बुनियाद रखी जाती है मसलन बेकार रसूमात से तौबा करना, ख़ुदा पर ईमान रखना,


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