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- Sanasan -




1 तीमु 6:4 - उर्दू हमअस्र तरजुमा

4 तो वो मग़रूर हैं और कुछ नहीं जानते। बल्के उन्हें सिर्फ़ फ़ुज़ूल बहस और लफ़्ज़ी तकरार करने का शौक़ है जिन का नतीजा हसद, झगड़े, बदगोई और बदज़बानी है।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

4 वो मग़रूर है और कुछ नहीं जानता; बल्कि उसे बहस और लफ़्ज़ी तकरार करने का मर्ज़ है, जिनसे हसद और झगड़े और बदगोइयाँ और बदगुमानियाँ,

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

किताब-ए मुक़द्दस

4 वह ख़ुदपसंदी से फूला हुआ है और कुछ नहीं समझता। ऐसा शख़्स बहस-मुबाहसा करने और ख़ाली बातों पर झगड़ने में ग़ैरसेहतमंद दिलचस्पी लेता है। नतीजे में हसद, झगड़े, कुफ़र और बदगुमानी पैदा होती है।

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1 तीमु 6:4
44 Iomraidhean Croise  

इस पर पौलुस और बरनबास की उन लोगों से सख़्त बहस-ओ-तकरार हुई। चुनांचे जमाअत ने पौलुस और बरनबास, और बाज़ दिगर अश्ख़ास को इस ग़रज़ से मुक़र्रर किया के वह यरूशलेम जायें और वहां इस मसले पर रसूलों और बुज़ुर्गों से बात करें।


लेकिन तुम्हारा इल्ज़ाम तो बाज़ लफ़्ज़ों, नामों और तुम्हारी अपनी शरीअत के मसलों से तअल्लुक़ रखता है। इस से तुम ख़ुद ही निपटो। मैं ऐसी बातों का मुन्सिफ़ नहीं बनूंगा।”


कुछ अर्से से शमऊन नाम एक आदमी ने सामरिया शहर में अपनी जादूगरी से सारे सामरिया के लोगों को हैरत में डाल रखा था और कहता था के वह एक बड़ा आदमी है।


आपस में यकदिल रहो, मग़रूर न बनो बल्के अदना लोगों के साथ मेल-जोल बढ़ाने पर राज़ी रहो। अपने आप को दूसरों से अक़्लमन्द न समझो।


और दिन की रोशनी के लाइक़ शाइस्ता ज़िन्दगी गुज़ारें जिस में नाच रंग, नशा बाज़ी, जिन्सी बदफ़ेली, शहवत-परस्ती, लड़ाई झगड़े और हसद वग़ैरा न हो।


कमज़ोर ईमान वाले को अपनी रिफ़ाक़त में शामिल तो कर लो लेकिन उस के शक-ओ-शुबहात को बहस का मौज़ू न बनाओ।


लेकिन जो ख़ुद ग़रज़ हैं और सच्चाई को तर्क कर के बदी की पैरवी करते हैं, उन पर ख़ुदा का क़हर और ग़ज़ब नाज़िल होगा।


अगर कोई इस बारे में हुज्जत करना चाहे तो उसे मालूम हो के न हमारा ऐसा दस्तूर है न ख़ुदा की जमाअतों का।


पहली बात तो यह है के जब तुम्हारी जमाअत जमा होती है तो मैंने सुना है के तुम्हारे दरमियान तफ़्रिक़े उठ खड़े होते हैं। मैं इस बात को किसी हद तक क़ाबिले-यक़ीन समझता हूं।


अपने आप को फ़रेब मत दो। अगर तुम में से कोई अपने आप को इस जहान में हकीम समझता है तो वह बेवक़ूफ़ बने ताके सच-मुच हकीम बन सके।


तुम अभी तक दुनियादारों की तरह ज़िन्दगी बसर कर रहे हो क्यूंके तुम हसद करते हो और आपस में झगड़ते हो। क्या तुम दुनियादार नहीं? क्या तुम दुनियवी तरीक़ पर नहीं चल रहे हो?


दर-हक़ीक़त, अगर कोई तुम्हें ग़ुलाम बनाता है या तुम्हें लूटता है, या तुम्हें फ़रेब देता है या तुम पर रोब जमाता है, और थप्पड़ रसीद करता है तो तुम यह भी बर्दाश्त कर लेते हो।


अगर तुम एक दूसरे को काटते फाड़ते और खाते हो तो ख़बरदार रहना, कहीं ऐसा न हो के एक दूसरे को ख़त्म कर डालो।


हमें शेख़ी मारना, एक दूसरे को भड़काना या एक दूसरे से हसद करना छोड़ देना चाहिये।


अगर कोई अपने आप को कुछ समझता है लेकिन कुछ भी नहीं है, तो वह ख़ुद को धोका देता है।


बाज़ तो हसद और झगड़े की वजह से अलमसीह की मुनादी करते हैं, बाज़ नेकनियती से।


और सब काम किसी शिकायत और हुज्जत के बग़ैर ही कर लिया करो,


तफ़्रिक़ा और फ़ुज़ूल फ़ख़्र के बाइस कुछ न करो। बल्के फ़रोतन होकर एक शख़्स दूसरे शख़्स को अपने से बेहतर समझे।


अगर कोई शख़्स ज़ाहिरी ख़ाकसारी और फ़रिश्तों की इबादत करने से ख़ुश होता है। ऐसा शख़्स बड़ी तफ़्सील से अपनी रोयाओं में देखी हुई चीज़ों का बयान करता है; और अपनी ग़ैर रूहानी अक़्ल पर बेफ़ाइदा फूल जाता है।


वह हर नाम निहाद ख़ुदा या इबादत के लाइक़ किसी भी चीज़ की जो ख़ुदा या माबूद कहलाती है उस की मुख़ालफ़त करेगा, वह ख़ुद को इन सब से बड़ा माबूद ठहरायेगा और यहां तक के वो ख़ुदा के मक़्दिस में बैठ कर अपने ख़ुदा होने का एलान कर देगा।


और उन फ़र्ज़ी दास्तानों और बेइन्तिहा नस्ब नामों का लिहाज़ न करें इन से ईमान पर मबनी नजात बख़्श इलाही काम आगे नहीं बढ़ता लेकिन महज़ झगड़े पैदा होते हैं।


वह शरीअत के मुअल्लिम बनना चाहते हैं, हालांके वो जो बातें कहते हैं और जिन का यक़ीनी तौर से दावा करते हैं उन्हें समझते भी नहीं हैं।


वह नौ मुरीद न हो, के तकब्बुर कर के कहीं वो इब्लीस की सी सज़ा न पाये।


ये बातें ख़ुदा के मुक़द्दसीन को याद दिलाता रह। और ख़ुदावन्द को हाज़िर जान कर उन्हें ताकीद कर के वो लफ़्ज़ी तकरार न करें क्यूंके इस से कुछ हासिल नहीं होता बल्के सुनने वाले बर्बाद हो जाते हैं।


बेवक़ूफ़ी और नादानी वाली बहसों से अलग रह क्यूंके तू जानता है के इन से झगड़े पैदा होते हैं।


ग़द्दार, बेहया, मग़रूर, ख़ुदा की निस्बत ऐश-ओ-इशरत को ज़्यादा पसन्द करने वाले होंगे।


लेकिन अहमक़ाना हुज्जतों, नस्ब नामों, बहसों और शरई तनाज़ों से परहेज़ करें, क्यूंके ऐसा करना बेफ़ाइदा और फ़ुज़ूल है।


ऐ मेरे अज़ीज़ भाईयों और बहनों! इस बात का ख़्याल रखना के हर आदमी सुनने में तेज़ और बोलने और ग़ुस्सा करने में धीमा हो।


मगर ये झूटे उस्ताद जिन बातों का इल्म भी नहीं रखते, उन पर भी लानत भेजते हैं। ये लोग बेअक़ल जानवरों की मानिन्द हैं जो फ़ित्री तौर पर शिकार किये जाने और हलाक होने के लिये पैदा हुए हैं और ये लोग जानवरों की मानिन्द हलाक हो जायेंगे।


ये लोग मग़रूर हैं, बेहूदा बकवास करते रहते हैं और शहवत-परस्ती के ज़रीअः उन लोगों को फिर से नफ़्सानी ख़ाहिशात में फंसा देते हैं जो अभी गुमराही में से बच कर निकल ही रहे हैं।


मगर ये लोग जिन बातों का इल्म भी नहीं रखते, उन पर भी लानत भेजते हैं और जिन बातों को मिज़ाजी तौर पर समझते हैं उन में अपने आप को बेअक़ल जानवरों की मानिन्द हलाक कर देते हैं।


यह लोग हमेशा बुड़बुड़ाते रहते शिकायत करते और दूसरों में ग़लतियां ढूंडते रहते हैं; यह अपनी नफ़्सानी बदख़ाहिशात के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारते हैं; और अपने मुंह से बड़ी शेख़ी मारते हैं और अपने फ़ायदा के लिये दूसरों की ख़ुशामद करते हैं।


और तू कहता है के मैं दौलतमन्द हूं और मालदार बन गया हूं और मुझे किसी चीज़ की हाजत नहीं; मगर तू ये नहीं जानता के तू हक़ीक़त में नामुराद, बेचारा, ग़रीब, नाबीना और नंगा है।


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