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- Sanasan -




1 तीमु 3:2 - उर्दू हमअस्र तरजुमा

2 लिहाज़ा निगहबान को चाहिये के वह बेइल्ज़ाम, एक बीवी का शौहर, परहेज़गार, ख़ुद पर क़ाबू रखने वाला, क़ाबिल-ए-एहतिराम, मुसाफ़िर परवर और तालीम देने के क़ाबिल हो।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

2 पस निगहबान को बेइल्ज़ाम, एक बीवी का शौहर, परहेज़गार, ख़ुदापरस्त, शाइस्ता, मुसाफ़िर परवर, और ता'लीम देने के लायक़ होना चाहिए।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

किताब-ए मुक़द्दस

2 लाज़िम है कि निगरान बेइलज़ाम हो। उस की एक ही बीवी हो। वह होशमंद, समझदार, शरीफ़, मेहमान-नवाज़ और तालीम देने के क़ाबिल हो।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac




1 तीमु 3:2
20 Iomraidhean Croise  

वह दोनों ख़ुदा की नज़र में रास्तबाज़ थे और ख़ुदावन्द के सब अहकाम और क़वानीन पर पूरी तरह बेऐब अमल करते थे।


वहां एक औरत भी थी जो नबिया थी। उस का नाम हन्‍ना था। वह आशर के क़बीला के एक शख़्स फ़नुएल की बेटी थी। वह बड़ी उम्र रसीदा थी और अपनी शादी के बाद सात साल तक अपने शौहर के साथ रही थी।


मुक़द्दसीन की ज़रूरतें पूरी करो, मुसाफ़िर परवरी में लगे रहो।


ताके तुम बेऐब और पाक एक होकर बदअख़्लाक़ और गुमराह लोगों के दरमियान, “ख़ुदा के बेनुक़्श फ़र्ज़न्दों की तरह इस जहान ज़िन्दगी गुज़ारो।” ताके उन में तुम आसमान के सितारों की मानिन्द चमको


ख़ादिम एक बीवी के शौहर, और अपने बच्चों और घरों को अच्छी तरह से बन्दोबस्त करने वाले हों।


इसी तरह जमाअत के ख़ादिमो को चाहिये के वह संजीदा मिज़ाज हों, दोरूख़े, शराबी और न जाइज़ कमाई के लालची न हों।


यह लोग ब्याह करने से मना करते हैं और उन बाज़ खानों से परहेज़ करने का हुक्म देते हैं जिन्हें ख़ुदा ने इसलिये पैदा किया है के मोमिनीन और हक़ को जानने वाले उन्हें शुक्र गुज़ारी के साथ खायें।


और वो नेक काम करने में मशहूर रही हो, और उस ने अपने बच्चों की तरबियत की हो, परदेसियों की मेहमान-नवाज़ी की हो, मुक़द्दसीन के पांव धोए हों, मुसीबतज़दों की मदद की हो और हर नेक काम करने में मश्ग़ूल रही हो।


किसी शख़्स को मख़्सूस करने के वास्ते उस पर हाथ रखने में जल्दी न करना और न दूसरों के गुनाहों में शरीक होना। अपने आप को पाक रखना।


जिस बेवा की उम्र साठ बरस से ज़्यादा हो उसी का नाम बेवाओं की फ़हरिस्त में दर्ज किया जाये और लाज़िम है के वो एक ही शौहर की बीवी रही हो।


और ख़ुदावन्द का ख़ादिम फ़सादी न हो बल्के वह सब के साथ नरमी से पेश आये, और तालीम देने के लाइक़ हो, और नाइन्साफ़ी की हालात में भी सब्र से काम ले।


बुज़ुर्गों मर्दों को सिखा के वह परहेज़गार, क़ाबिल-ए-एहतिराम, अपने नफ़्स पर क़ाबू रखने वाले, ईमान, महब्बत और सब्र में पक्के हों।


अजनबियों की मुसाफ़िर परवरी करना मत भूलो, क्यूंके ऐसा करने से बाज़ ने फ़रिश्तों की बेख़बरी में मेहमान-नवाज़ी की है।


क्यूंके हम अलमसीह में शरीक हो चुके हैं, बशर्ते के अपने इब्तिदाई उम्मीद पर आख़िर तक मज़बूती से क़ाइम रहें।


दुनिया के ख़ातिमा का वक़्त नज़दीक आ गया है। इसलिये होशयार रहो, और सरगर्म होकर ख़ूब दुआ करो।


बग़ैर बुड़बुड़ाए एक दूसरे की मेहमान-नवाज़ी में लगे रहो।


होशयार और ख़बरदार रहो क्यूंके तुम्हारा दुश्मन इब्लीस धाड़ते हुए शेर बब्बर की मानिन्द ढूंडता फिरता है के किस को फाड़ खाये।


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