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- Sanasan -




1 पतरस 2:1 - उर्दू हमअस्र तरजुमा

1 पस हर क़िस्म की बुराई, फ़रेब, रियाकारी, हसद और बदगोई को दूर कर दो।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

1 पस हर तरह की बद्ख़्वाही और सारे फ़रेब और रियाकारी और हसद और हर तरह की बदगोई को दूर करके,

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

किताब-ए मुक़द्दस

1 चुनाँचे अपनी ज़िंदगी से तमाम तरह की बुराई, धोकेबाज़ी, रियाकारी, हसद और बुहतान निकालें।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac




1 पतरस 2:1
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ऐ रियाकारों! हज़रत यसायाह नबी ने तुम्हारे बारे में क्या ख़ूब नुबुव्वत की है:


इसी तरह तुम भी बाहर से तो लोगों को रास्तबाज़ नज़र आते हो लेकिन अन्दर रियाकारी और बेदीनी से भरे हुए हो।


तो वह उसे ग़ज़बनाक सज़ा देगा उस का अन्जाम रियाकारों के जैसा होगा जहां वह रोता और दांत पीसता रहेगा।


ऐ रियाकार! पहले अपनी आंख में से तो शहतीर निकाल, फिर अपने भाई या बहन की आंख में से तिनके को अच्छी तरह देखकर निकाल सकेगा।


क्या हम क़ैसर को महसूल अदा करें या नहीं?” हुज़ूर ईसा उन की मुनाफ़क़त को समझ गये और फ़रमाया। “मुझे क्यूं आज़माते हो? मुझे एक दीनार लाकर दिखाओ।”


“तुम पर अफ़सोस, तुम उन पोशीदा क़ब्रों की तरह हो जिन पर से लोग अनजाने में पांव रखते हुए गुज़र जाते हैं।”


इसी दौरान हज़ारों आदमियों का मज्मा लग गया, और जब वह एक दूसरे पर गिरे पड़ रहे थे, तो हुज़ूर ईसा ने सब से पहले अपने शागिर्दों, से मुख़ातिब होकर फ़रमाया: “फ़रीसियों के ख़मीर यानी उन की रियाकारी से ख़बरदार रहना।


और जब तुम्हारी अपनी ही आंख में शहतीर है जिसे तुम ख़ुद नहीं देख सकते तो किस मुंह से अपने भाई या बहन से कह सकते हो, लाओ, ‘मैं तुम्हारी आंख में से तिनका निकाल दूं,’ ऐ रियाकार! पहले अपनी आंख में से तो शहतीर निकाल, फिर अपने भाई या बहन की आंख में से तिनके को अच्छी तरह देखकर निकाल सकेगा।


जब हुज़ूर ईसा ने नतनएल को पास आते देखा तो उस के बारे में फ़रमाया, “ये है हक़ीक़ी इस्राईली, जिस के दिल में खोट नहीं।”


वह हर तरह की बदकारी, बुराई हिर्स और बदचलनी से भर गये। और हसद, ख़ूंरेज़ी, झगड़े, अय्यारी और बुग़्ज़ से मामूर हो गये,


ऐ भाईयो और बहनों! तुम अक़्ल के लिहाज़ से बच्चे न बने रहो। हां, बदी के लिहाज़ से तो मासूम बच्चे बना रहो लेकिन अक़्ल के लिहाज़ से, अपने आप को बालिग़ साबित करो।


पस आओ हम ईद मनायें लेकिन पुराने ख़मीर से नहीं जो शरारत और बदी का ख़मीर है बल्के पाकीज़गी और सच्चाई की बेख़मीरी रोटी से।


क्यूंके मुझे डर है के वहां आकर में जैसा चाहता हूं तुम्हें वैसा न पाओ। और मुझे भी जैसा तुम चाहते हो वैसा न पाऊं, मुझे अन्देशा है के कहीं तुम में लड़ाई झगड़े, हसद, ग़ुस्सा, तफ़्रिक़े, बदगोई, चुग़लख़ोरी, शेख़ी और फ़साद न हों।


हर क़िस्म का कीना, क़हर, ग़ुस्सा, तकरार और कुफ़्र, सारी दुश्मनी समेत अपने से दूर कर दो।


चुनांचे हम जो कुछ भी अर्ज़ करते हैं तुम्हें ग़लती या नापाक मक़सद है और न ही हम तुम्हें फ़रेब देने की कोशिश में हैं।


ठीक इसी तरह ख़्वातीन भी क़ाबिल-ए-एहतिराम, दूसरों पर तोहमत लगाने वाली न हों बल्के होशमंद और हर बात में वफ़ादार हों।


इसी तरह बुज़ुर्ग ख़्वातीन को हिदायत दो के वह भी मुक़द्दसीन की सी ज़िन्दगी बसर करें और तोहमत लगाने वाली और शराब पीने वाली न हों बल्के अच्छी बातों की तालीम देने वाली हों।


चुनांचे जब गवाहों का इतना बड़ा बादल हमें घेरे हुए है तो हम भी हर एक रुकावट और उस गुनाह को जो हमें आसानी से उलझा लेता है, दूर कर के उस दौड़ में सब्र से दौड़ें जो हमारे लिये मुक़र्रर की गई है।


चुनांचे अपनी ज़िन्दगी की सारी नापाकी और बदी की सारी गंदगी को दूर कर के उस कलाम को हलीमी से क़बूल कर लो जो तुम्हारे दिलों में बोया गया है और जो तुम्हें नजात दे सकता है।


लेकिन अगर तुम अपने दिल में सख़्त जलन और ख़ुदग़रज़ी रखते हो तो हक़ के ख़िलाफ़ शेख़ी न मारो, और न ही झूट बोलो।


ऐ भाईयो और बहनों! तुम आपस में एक दूसरे की बदगोई न करो। जो अपने भाई की बदगोई करता और उस पर इल्ज़ाम लगाता है वह शरीअत की बदगोई करता है और उस पर इल्ज़ाम लगाता है। और अगर तुम शरीअत पर इल्ज़ाम लगाते हो तो तुम शरीअत पर अमल करने की बजाय उस का मुन्सिफ़ बन बैठे हो।


क्या तुम यह समझते हो के किताब-ए-मुक़द्दस बेफ़ाइदा फ़रमाती है के जिस पाक रूह को ख़ुदा ने हमारे दिलों में बसाया है क्या वो ऐसी आरज़ू रखता है जिस का अन्जाम हसद हो?


ऐ भाईयों और बहनों! एक दूसरे की शिकायत करने और बुड़बुड़ाने से बाज़ रहो ताके तुम सज़ा न पाओ। देखो! इन्साफ़ करने वाला दरवाज़े पर खड़ा है।


और तुम ख़ुद को आज़ाद जानो, मगर अपनी इस आज़ादी को बदकारी की लिये इस्तिमाल न करो, बल्के ख़ुदा के बन्दों की तरह ज़िन्दगी बसर करो।


“क्यूंके अलमसीह ने न तो कोई गुनाह किया, और न ही उन के मुंह से कोई फ़रेब बात निकली।”


जैसा के किताब-ए-मुक़द्दस का बयान है, “जो कोई ज़िन्दगी से महब्बत रखता है और अच्छे दिन देखने का ख़ाहिशमन्द है, वह अपनी ज़बान को बदी से और लबों को दग़ा की बातों से बाज़ रखे।


इसलिये अब से तुम्हारी बाक़ी जिस्मानी ज़िन्दगी नफ़्सानी ख़ाहिशात को पूरा करने में नहीं बल्के ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ गुज़रे।


और अब वो तअज्जुब करते हैं के तुम बदचलनी और अय्याशी में उन का साथ नहीं देते हो इसलिये अब वो तुम्हारी बुराई करते रहते हैं।


और उन के मुंह से कभी झूट नहीं निकला। वो बेऐब हैं।


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