“ईन्देंखे हाँव तुँओं खे बुलू, के आप्णें पराँण जीवन का किऐ फिकर ने करे, के आँमें का खाँऊबे, अरह् का पीऊँबे; अरह् ना आप्णें देह्-शरीर खे, के का बाँम्बुबे; कियो पराँण भोजन शे, अरह् देह्-शरीर खोट्णों शी जादा बड़ियों आथी ने?
ईन्देंखे जे भोजन के जाँणें मेरे भाऐ के बंऐणीं के ढैस-ठोकर लागो, तअ हाँव कद्दी भे कोसी कारण शा माँस ने खाँदी, कद्दी ऐशो ने हईयों के मेरे भाऐ की बंऐणी दी ढैस-ठोकर ने लागो, अरह् हाँव तिनके पाप का भागी ने बंणू।
के कोसी आत्त्मा के बचन के कोसी पंत्री के जाँणें, जुणजी के अमाँरी ढबै शी जेऐ हों; ऐजो जाँणियों के प्रभू को देस आऐ पुझ़ों; ईन्दें लंई तुवाँरा मंन डामाँडोल ने हों, अरह् ना तुऐ डरह्।