24 परह् देह्-शरीर दो रंहणों तुँवारी ताँईऐं बैगेही जरूरी असो।
24 पौरौ जियुंदी रौयौ तोंवारै मौदद कौरणा हौजौ बै जौरुरी औसौ।
तबे भे संच्चाऐ तअ ऐजी असो, के मेरो ज़ाँणों तुवाँरी ताँईऐ फ़ाय्देंबंन्द असो; किन्देंखे के जे हाँव ने ज़ाँऊँबा, तअ सेजा मंद्त्तगार मतल्व पबित्र-आत्त्माँ तुओं कैई ने आँदी; परह् जे हाँव ज़ाँऊबा, तअ हाँव तेसी पबित्र-आत्त्मा तुँओं कैई डेयाल़ी देऊँबा।
परह् जे देह्-शरीर दो जीऊँदो रंहणों ही मेरी काँम-काज़ खे फाय्दे बंद असो, तअ हाँव ने जाँण्दा के का चूणु अरह् का छ़ाँटू।
किन्देंखे के हाँव दूई के बिचो दा अदमो दा लटकी रूआ, दिल तअ ऐशो चहाँव, के आप्णीं ऐजी देह्-शरीर छ़ुड़ियों ऐकदंम मसीया कैई ज़ाऊँ; किन्देंखे के ऐजो मुँखे बैजाऐ आछो असो।