प्रकाशितवाक्य 18:3 - बाघली सराज़ी नऊंअ बधान3 “तेसरी कंज़रैईए झ़रीली शराबा करै हुई सोभै ज़ाती छ़ोतली। “पृथूईए राज़ै की तेसा संघै कंज़रैई और पृथूईए बपारी हुऐ तेसा संघै भोग करी करै जोधै और सेठ।” (यिर्मयाह 51:7) Faic an caibideilकुल्वी3 किबैकि तेसरै व्यभिचारै री भयानक मदिरै री बजहा न सैभै ज़ाति गिरी, होर धौरती रै राज़ै तेसा सैंघै व्यभिचार केरू, होर धौरती रै व्यपारी तेसरै सुख-विलासै री बजहा न धनवान हुऐ सी। Faic an caibideilईनर सराजी मे नया नियम3 किबेकि तेऊरे ब्यभिचारा रे तगडे मदिरा री बझा का सारी जाति पड़ी दी थी, होर धरती रे राजे तेसा संघे व्यभिचार करू; होर धरती रे व्यापारी तेसके सुख विलासा रा बोझ कअ सेठ होई। Faic an caibideil |