मत्ती 13:30 - बाघली सराज़ी नऊंअ बधान30 तम्हैं करा इहअ लऊंणै तैणीं दैआ इना दुही संघा-संघा बझ़णै। लऊंणे बगती बोल़णअ मुंह लऊंणै आल़ै लै कि इना ज़ंगली लबहरैओ लाऐ एकी ज़ैगा दहणा लै रूल़ और नाज़ करै मेरै भढारै कठा।’” Faic an caibideilकुल्वी30 फसला पौकणै ढौई दुही बै सैंघै-सैंघै बढ़नै दैआ, होर ज़ैबै फसल काटणै रा बौगत एला ता मूँ काटणू आल़ै बै बोलणा; कि तुसै पैहलै जंगली बेज़ै रै झ़ोटै रै पूल़ै बणाईया तिन्हां बै फूका, होर गेहूँ बै कठा केरिया मेरै नाज़ गौदामा न रखा।’” Faic an caibideilईनर सराजी मे नया नियम30 फसला काटणे तणी दुही कठे बढने देया, होर काटणे वक्ते महा काटणे आले बै बोलणा कि पहिले जंगली दाणे रे बूटे बटोरी करे ज़ाल़ने बै कठे बान्हाँ, होर गिहू मेरे भंडारा में कठे करा। Faic an caibideil |
मंऐं बोलअ ताल्है कि छ़ेकै निं कुंण सैणअ बणांईं ज़ेभै तैणीं तम्हैं तिन्नें ज़िन्दगी ज़ाच़ी भाल़ी नां लए, किल्हैकि कई मणछ करा च़ोरी-छ़ुपै पाप इहअ करै ज़ुंण तिन्नैं किअ तेतो निं तेभै तैणीं थोघ लागदअ ज़ेभै तैणीं तिंयां कुंणी भाल़ै निं। पर कई लोग करा खुल्है आम पाप और लोगा का हआ तिन्नां परखणैं का पैहलै ई थोघ।