काहैकि जो कुछ दुनिया मैं है, मतलब सरीर की इच्छा, और आँखिन की इच्छा और सम्पत्ति को इतनो घमंड जो जे लोगन के ऊपर है, बौ सब दऊवा के घाँईं से ना, बल्कि दुनिया के घाँईं से आथै।
जितनी बौ अपनी बड़ाँईं करी और सुख-विलास करी उतनिये बाकै दर्द, और दुख देबौ। काहैकि बौ अपने मन मैं कहथै: ‘हिंयाँ बैठी मैं एक रानी हौं! मैं बिधवा नहीं हूँ, और दुख मैं कभी नाय पड़ंगो!’